पहाड़ दूर से बहुत सुंदर लगते हैं. क़रीब जाइए तो उनकी हक़ीक़त समझ में आती है. अपनी आंखों के सैलानीपन से बाहर आकर आप देखेंगे तो पाएंगे कि पहाड़ की ज़िंदगी कितनी तरह के इम्तिहान लेती है. यह बदक़िस्मती नहीं, विकास की बदनीयती है कि इन दिनों पहाड़ के संकट और बढ़ गए हैं. पहाड़ आज की तारीख़ में बेदख़ली, विस्थापन और सन्नाटे का नाम है. घरों पर ताले पड़े हुए हैं, दिलों में उदासी है, थके हुए पांव राहत नाम के किसी भुलावे की उम्मीद में पहाड़ों से उतरते हैं.