क्या हमारी अदालतें आस्था के नाम पर या लोगों के बीच व्यापक प्रतिक्रिया को लेकर आशंकित रहती हैं. उनकी चिंता में यह होता है कि फैसले के बाद क्या होगा. क्या ऐसा होना चिंता की बात नहीं है. नवंबर 2015 में जब हाज़ी अली में औरतों के प्रवेश को लेकर बांबे हाईकोर्ट के सामने याचिका आई तो जस्टिस वीएम कनाड़े ने कहा कि ये जो समय है वो असहिष्णुता का समय है. धार्मिक मामलों में लोग अक्सर संवेदनशील हो जाते हैं, इसलिए हम आम तौर पर कोशिश करते हैं कि दखल ही न दें.