केदारनाथ सिंह की एक कविता है बनारस. कई बार लगता है कि बनारस बनारस से ज़्यादा उनकी कविता में है. हमने कोशिश की है कि कवि की विदाई में कोई कमी न रह जाए, फिर भी रह गई हो तो माफ कर दीजिएगा, अब ज़रा तस्वीरों के पीछे से आती आवाज़ के ज़रिए उनकी कविता को महसूस कीजिए, क्या पता केदानराथ सिंह बनारस में मिल जाएं.