होना कुछ नहीं है क्योंकि हुआ ही कुछ नहीं था. लेकिन जिन्होंने कुछ नहीं किया वो उन्हें दोषी बता रहे हैं जिन्हें बहुत कुछ नहीं करना था. पटना के लोग मिलकर पटना के लोगों को कोस रहे हैं. कुर्सी वाले बादलों को कोस रहे हैं. एक दुर्घटना की तरह है पटना. अधमरा और चरमराया सा. गनीमत है कि बगल की गंगा के कारण पटना में पानी नहीं जमा है. आप सोच रहे होंगे कि इस तबाही के बाद पटना गंभीर हो जाएगा तो आप फणीश्वर नाथ रेणु को पढ़िए. बाढ़ पर उससे अच्छी रिपोर्टिंग आपको नहीं मिलेगी. 1975 की बाढ़ का रिपोर्ताज ऋणजल धनजल नाम से प्रकाशित है. उसमें जो पटना दिख रहा है वो आज भी वैसा ही है. समय की सारी अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए अपनी अव्यवस्थाओं से परे पटना के लोग लाचार सरकार की तरफ नहीं, पानी की तरफ देख रहे हैं. पानी कितना कम हुआ, पानी कितना आ गया. फर्क इतना है कि पहले देखते थे अब सेल्फी खिंचा रहे हैं.