कई बार सर्वोच्च अदालत के कुछ फैसले को इस लिए नहीं पढ़ा जाना चाहिए कि वह आपके हिसाब से आया है. बल्कि इस लिए भी पढ़ा जाना चाहिए कि फैसले तक पहुंचने से पहले तर्कों की प्रक्रिया क्या है, उसकी भाषा क्या है और भाषा की भावना क्या है. आईपीसी की धारा 377 को समाप्त करने का फैसला जिस पीठ ने दिया है उसमें शामिल सभी जजों को इतिहास में याद किए जाएंगे. अफसोस सिर्फ इतना है कि 6 सितंबर से शुरू हो रही इतिहास की इस यात्रा में भारत सरकार शामिल नहीं है.