Shyam Benegal Death: ये वो सिनेमा था जिसे हिंदी की दुनिया पहली बार देख रही थी. हैरान थी कि हिंदी फिल्मों में ये संसार कहां से चला आया. सत्तर के दशक में कारोबारी फिल्मों से अलग हटकर यह जो नया सिनेमा बना-उसे कई नाम दिए गए- इसे कला फिल्म कहा गया, इसे समानांतर सिनेमा कहा गया, इसे प्रतिरोध का सिनेमा कहा गया. निश्चय ही इस धारा के सबसे बड़े प्रतिनिधि पुरुष श्याम बेनेगल थे. 1973 से 1977 के बीच उन्होंने चार-पांच ऐसी फिल्में बना दीं जो उस समय के खदबदाते मिज़ाज को पकड़ती थीं. जब उन्होंने शुरुआत की, तब बंगाल में नक्सल क्रांति कुचली जा चुकी थी, इंदिरा गांधी गरीबी हटाओ का नारा देकर सत्ता में काबिज़ थीं और इमरजेंसी की दस्तक दूर थी. लेकिन एक असंतोष, एक मोहभंग समाज में था जिसने कारोबारी फिल्मों में अमिताभ बच्चन जैसे ऐंग्री यंगमैन की छवि में पनाह पाई तो श्याम बेनेगल और उन जैसे कई फिल्मकारों की दूसरी फिल्मों में एक वास्तविक अभिव्यक्ति पाई.