बोलने की सजा भी होती है तो बोलने से इंसाफ भी मिलता है. सजा बहुत आसानी से मिल जाती है इंसाफ थोड़ा मुश्किल से मिलता है. लेकिन इन्हीं सब के बीच कोई खिड़की हल्के हवा के झोंके से खुल जाती है. और वो हौसले का चिराग दिखा जाती है. साहस की परीक्षा नागरिक को ही देनी होती है. वही जब इस चुनौती को स्वीकार करता है, संविधान की दी हुई परीक्षा शुरू हो जाती है. बगैर इन इम्तिहानों से गुजरे हुए कोई लोकतंत्र फ्रूटी का डिब्बा है.