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रवीश कुमार का प्राइम टाइम : सच छापा तो पड़ गया छापा

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अगर आप सरकार से सवाल करना चाहते हैं. आलोचना करना चाहते हैं तो पहले एक काम कीजिए. आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय, जिसे ईडी कहते हैं, उनके अधिकारियों से पूछ लीजिए कि कितना तक लिखें तो छापा पड़ेगा? कितना तक न लिखें तो छापा नहीं पड़ेगा? अभी तक चुनाव आते ही विपक्षी दलों के नेताओं और उनसे जुड़े लोगों के यहां छापेमारी होने लग जाती थी. लेकिन क्या अब खबर छापने और दिखाने के बाद या उसके कारण छापेमारी होने लगी है? आपातकाल शब्द इतना घिस चुका है, कि आप इसके इस्तेमाल से कुछ भी नहीं कह पाते हैं. काल के नए-नए रूप आ गए हैं. दूसरी लहर के दौरान हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी अखबारों में भास्कर अकेला ऐसा अखबार है, जिसने नरसंहार को लेकर सरकार से असहज सवाल पूछे. उन बातों से पर्दा हटा दिया, जिन्हें ढंकने की कोशिश हो रही थी. इस दौरान भास्कर के पत्रकारों ने न केवल अच्छी रिपोर्टिंग की, बल्कि महामारी की रिपोर्टिंग में नए-नए पहलू भी जोड़ दिए.



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