मोदी सरकार पार्ट- 2 का पहला बजट आ गया. चुनाव ख़त्म हो चुका है इसलिए बजट में हल्ला हंगामा कम है. इसका संदेश यह भी है कि अगर सरकार के आर्थिक क्रिया कलापों को देखना समझना है तो बजट के बाहर भी देखना होगा. जिन्हें सिर्फ बजट में देखने की आदत है उनके लिए बजट में भाषण भी है. सवाल है बजट जैसे विस्तृत दस्तावेज़ को साबुन तेल के दामों में उतार-चढ़ाव से देखा जाए या उन नीतियों को लागू करने के लिए पैसे के इंतज़ाम और पैसे के ख़र्च के हिसाब से देखा जाए. फिर इसके लिए भाषण के अलावा उस हिस्से को देखना होगा जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नहीं पढ़ा. अब जिन लोगों ने मेहनत की होगी वो बजट ख़र्चे के हिसाब वाले पेपर को पढ़ेंगे और आपको बताएंगे. वित्त मंत्री ने कहा कि इस वित्त वर्ष में ही भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा. इस वक्त 2.7 ट्रिलियन डालर का है. 55 साल में भारत की अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन डॉलर की हो पाई थी. पिछले पांच साल में ही सरकार ने इसका आकार 1 ट्रिलियन यानी एक ट्रिलियन डॉलर बढ़ा दिया है. ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी. एक नया सपना तो है लेकिन क्या यह नया पैमाना भी है. क्या हम जानबूझ कर इस पैमाने को नारे में बदल रहे हैं ताकि बाकी जगहों पर निगाह नहीं जाए और सपने में खो जाएं. क्या 55 साल से तुलना करना सही होगा?