बैंकों से जुड़ी खबरें अर्थव्यवस्था की अलग तस्वीर पेश कर रही हैं. एक तरफ निजीकरण की आवाज़ आ रही है तो दूसरी तरफ बैंकों के ऊपर लोन का भार बढ़ता जा रहा है. क्या हमारे बैंक 20 लाख करोड़ के एनपीए का झटका बर्दाश्त कर पाएंगे? अगर ऐसा हुआ तो भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? विवेक कॉल ने मिंट के अपने लेख में कहा है कि रास्ता यही बचा है कि बैंक अपनी हिस्सेदारी बेचें और बाज़ार से पैसा जमा करें. मतलब साफ है सरकारी बैंकों का निजीकरण. विवेक कॉल ने यह भी लिखा है कि प्राइवेट बैंकों ने नई नौकरियों पर रोक लगा दी है. वे अब लोन वसूली के लिए भर्तियां कर रहे हैं. मतलब कि उन्हें चुनौती दिख गई है कि आने वाले समय में लोन को लेकर क्या होने जा रहा है.