पटना हाईकोर्ट में आज अप्रत्याशित हुआ. जस्टिस राकेश कुमार के फैसले को 24 घंटे के भीतर 11 जजों की बेंच ने निरस्त कर दिया. जस्टिस राकेश कुमार से इस वक्त सारा काम ले लिया गया है. वो किसी केस की सुनवाई नहीं कर रहे हैं. फैसले में ऐसा क्या था कि सुबह सुबह 11 जजों की बैठक हुई और पूरे फैसले को निरस्त कर दिया. जस्टिस राकेश कुमार पूर्व आईएएस अधिकारी के पी रमैय्या की अग्रिम ज़मानत के मामले में सुनवाई कर रहे थे. 23 मार्च 2018 को हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम ज़मानत की याचिका ठुकरा दी थी. अब बात करते हैं 'वॉर एंड पीस' की. लियो टॉलस्टाय ने 1869 में 'वॉर एंड पीस' पूरी की थी, 2019 में भारत में इस किताब को लेकर वॉर जैसी स्थिति तो नहीं है लेकिन पीस जैसी भी नहीं है. पहले इस मामले को समझना ज़रूरी है कि संदर्भ क्या है. क्या मीडिया ने हड़बड़ी में रिपोर्टिंग कर दी और सोशल मीडिया में लोग सक्रिय हो गए. मुंबई हाईकोर्ट में भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार एक आरोपी वी गोंज़ाल्विस की ज़मानत याचिका पर सुनवाई हो रही थी. इसकी सुनवाई जस्टिस सारंग कोतवाल कर रहे थे. पुणे पुलिस उनकी ज़मानत का विरोध कर रही थी जिसने गोंज़ाल्विस को पिछले साल अगस्त में अनलाफुल एक्टिविटिज़ प्रिवेंशन एक्ट के तहत गिरफ्तार किया था. पुलिस ने गोंज़ाल्विस के खिलाफ सीडी और कुछ किताबें पेश की और कहा कि ये उनके घर से बरामद हुई हैं और गंभीर हैं. जो भी ज़ब्ती हुई है उसकी सूची पेश की गई. जिसमें कई चीज़ें थी. मार्कसिस्ट आर्काइव की सीडी, कबीर कला मंच की सीडी जिसका टाइटल है राज्य दमन विरोधी और कुछ किताबें. सुधा भारद्वाज के वकील युग मोहित चौधरी ने कहा कि उस सूची में लियो टॉल्सटाय की किताब वॉर एंड पीस है ही नहीं, लेकिन मीडिया में रिपोर्ट बन गई कि जस्टिस सारंग कोतवाल ने 'वॉर एंड पीस' से संबंधित टिप्पणी की है और पूछा है कि दूसरे देश के युद्ध से संबंधित किताब क्यों है?