वो साल था 1957 का, जगह थी बिहार (Bihar) शहर था बेगूसराय (Begusarai) और मौका था आजाद हिंदुस्तान के दुसरे ( parliament elections) यानी (Lok Sabha Chunav) लोकसभा के उस चुनाव का, जिसमें हुई थी गणतंत्र भारत (Republic of India) के इतिहास (History) की पहली बूथ कैप्चरिंग (Booth Capturing) की वारदात (Disaster) वो वारदात जिसने तबाह कर दिया भारत के लोकतांत्रिक ( Democratic ) ताने-बाने को, वो वारदात जिसको अंजाम दिया था कुख्यात डॉन कामदेव सिंह नें, वो वारदात जिसकी कीमत अगले लगभग 40 सालों तक हिंदुस्तान (India) और हर हिंदुस्तानी (Indians) चुकाता रहा, क्योंकि 1957 में बिहार से पैदा हुआ बूथ कैप्चरिंग कल्चर अगले लगभग 4 दशकों तक हिंदुस्तान के लोकतंत्र की हत्या करता रहा,बुलेट और बैलेट (Bullet and Ballot) के इस गठजोड़ नें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बुनियाद को हिला कर रख दिया था, चुनाव आते रहे, जाते रहे हालात चुनाव दर चुनाव बद्तर होते गए , और आम लोगों का यकीन चुनावी राजनीति से उठने लगा, और इन सबके बीच लहुलुहान लोकतंत्र और लोकतंत्र का रक्षक चुनाव आयोग (Election Comission of India ECI) असहाय और बेबस नजर आ रहा था, 80 का दशक आते-आते अपराध- अपराधी राजनीति और राजनेताओं ( crime criminals politics and politicians) का एक ऐसा गठजोड़ (Nexus) तैयार होने लगा जिसके चलते हिंदुस्तान के कई इलाके बूथ कैप्चरिंग, चुनावी धोखाधड़ी और हिंसा की आग में झुलसने लगे, दर्द हद से गुजरने लगा, पानी सिर के ऊपर से बहने लगा और यहीं से बैलेट पेपर (Ballot Paper) के विकल्प की जो खोज शुरु हुई वो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machine) यानी EVM की शक्ल में सामने आई।