राजनीति में कई नेता लोग ज़मीन पर जनता के बीच काम कर अपनी जगह और पहचान बनाते हैं तो कई लोगों को अपने बाप-दादा की सियासत भी विरासत में मिल जाती है. विरासत में मिली इस सियासत को भी कई नेता बहुत सहेज कर रखते हैं और आगे बढ़ाते हैं. तो कई ऐसे भी होते हैं जो इसे गंवा भी देते हैं. लेकिन सियासत में मिली ये विरासत भी वोट जुटाने के समय बहुत काम आती है. यही वजह है कि चुनावों से पहले सब नेताओं को अपनी ये विरासत याद आती है क्योंकि उसे भुनाने का यही सबसे सही समय जो होता है. आम चुनाव क़रीब हैं और एनडीए में भी ऐसे नेताओं की पूछ बढ़ गई है. हालांकि बीजेपी परिवारवाद की राजनीति को बढाने की मुखर विरोधी है. किन गठबंधन के सहयोगियों का कुनबा अपने साथ जोड़ने के लिये बीजेपी. कम से कम इस परिवारवाद के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालती दिख रही है.