सत्ता का अहंकार चरम पर है. जब भी स्त्रियों के खिलाफ हिंसा का सवाल उठता है, मर्द विधायक और सांसद अपना रंग दिखाने लगते हैं. पता चलता है कि जनता के करोड़ों रुपये बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के विज्ञापन लिखवाने में फूंक दिए गए और अपने ही नेताओं की मानसिकता का कोई इलाज नहीं हुआ. कितनी बार हर दल के ऐसे नेताओं के स्त्री विरोधी बयानों की आलोचना हुई है फिर भी इन्हें फर्क क्यों नहीं पड़ता है?