सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए. दुष्यंत की कई पंक्तियां सड़क से संसद तक गूंजती हैं. लेकिन उनकी याद को सहेजना कोई नहीं चाहता. बिजनौर में जन्मे दुष्यंत हैं तो पूरे देश-दुनिया के लेकिन भोपाल से उनका कुछ ख़ास रिश्ता था, यादें थीं. जिन्हें भोपाल की दुष्यंत पांडुलिपि संग्रहालय में संभाला गया. इस संग्रहालय में शानी का टाइपराइटर है तो टैगोर के ख़त. लेकिन स्मार्ट सिटी के नाम पर इन पर हथौड़ा चलने लगा है. शिवराज सिंह के आश्वासन के बाद भी संग्रहालय को नई जगह नहीं मिली और पुराने ठिकाने को तोड़ा जाने लगा है. संग्रहालय तक जाने के रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं. ऐसे में संग्रहालय से जुड़े लोग अब आंदोलन की राह पर हैं.