सवाल ख़ुद से पूछना चाहिए कि क्या हम हर हाल में हिंसा की संस्कृति के ख़िलाफ़ हैं. अगर हैं तो क्या सभी प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं. सरकार, अदालत और मरीज़ों के परिजनों की प्रतिक्रिया देखकर यही लगता है कि पब्लिक में डाक्टरों के प्रति किस प्रकार का विश्वास कायम है. इस बहस में यह सवाल भी ज़रूरी है कि कहीं मरीज़ और उसके परिजन महंगी इलाज और अस्पतालों में भीड़ के लिए डाक्टर को तो दोषी नहीं मान रहे हैं. क्यों डाक्टर अपनी एकता का प्रदर्शन सिर्फ सुरक्षा के सवाल को लेकर करते हैं. दूसरे सवालों को लेकर वे क्यों नहीं आगे आते हैं. क्यों आईसीयू को लेकर हंगामा होता है. क्यों नहीं आईसीयू की संख्या बढ़ाई जा सकती है.