विकास के नाम हजारों पेड़ों की बलि! उत्तराखंड में स्थानीय लोग, पर्यावरण प्रेमी कर रहे विरोध

गंगोत्री और चमोली की तरह ही देहरादून ऋषिकेश हाईवे पर भानियावाला से ऋषिकेश तक करीब 3400 पेड़ काटे जाने हैं. पेड़ों पर निशान भी लगा दिया गया है, लेकिन इस मामले को वन्य प्रेमी और स्थानीय लोग हाई कोर्ट में ले गए थे. उनका कहना है कि पेड़ों को नहीं काटा जाना चाहिए.

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उत्तराखंड की देवभूमि इस समय एक बड़ी समस्या से गुजर रही है. एक तरफ पर्यटन के लिए सड़कों का जाल बिछाने का विकास मॉडल है, तो दूसरी तरफ हिमालय के अस्तित्व को बचाने की पर्यावरण की पुकार. गंगोत्री से लेकर चमोली और देहरादून तक हजारों पेड़ों के कटान ने स्थानीय निवासियों और पर्यावरण प्रेमियों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है. उत्तराखंड में लगातार मानसून सीजन में पहाड़ धड़कते रहे हैं. राज्य में कई ऐसी बड़ी घटनाएं घटी हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि पहाड़ों से छेड़छाड़ ठीक नहीं है. जंगलों का कटान हिमालय की सेहत के लिए ठीक नही है .

सड़क मार्ग को बनाने के लिए पेड़ों की कटाई हुई

उत्तराखंड जैसा हिमालय राज्य जहां पर लगभग 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है, जिसमे 45 प्रतिशत डेंस फॉरेस्ट एरिया है. राज्य में लगातार तेजी से विकास हुआ है, तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हुआ है, लेकिन इस तेजी से विकास की दौड़ में जंगलों का कटान भी तेजी से हुआ है. फिर चाहे चार धाम ऑल वेदर रोड हो, राज्य में बड़ी छोटी जल विद्युत परियोजनाएं हो, या फिर नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे या फिर जिला हाईवे के अलावा और अन्य सड़क मार्ग को बनाने के लिए पेड़ों की कटाई हुई है.

इस समय उत्तराखंड में गंगोत्री नेशनल हाईवे में देवदार के पेड़ों के कटान का मामला गरमाया हुआ है. देहरादून-ऋषिकेश हाईवे के निर्माण में 3400 पेड़ो के कटान का मामला भी है. चमोली में 5 हजार से ज्यादा पेड़ो के कटान का मामला और बागेश्वर, चंपावत में भी 5000 से ज्यादा पेड़ों के कटान का मामला सुर्खियों में है.

गंगोत्री नेशनल हाईवे जाने के लिए करीब 3500 से ज्यादा देवदार और अन्य पेडों के कटान का स्थानीय लोगों सहित पर्यावरण प्रेमी विरोध कर रहे हैं. लगातार विरोध चल रहा है और राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक यह मांग की जा रही है कि देवदार के पेड़ों को ना काटा जाए.

दरअसल सीमांत सड़क का चौड़ीकरण होना है. लेकिन चौड़ीकरण में कटने वाले देवदारों के वृक्ष का विरोध हाल ही में  पर्यवारण प्रेमियों रक्षा सूत्र बाँध कर किया है. उत्तरकाशी में आल वेदर रोड के तहत गंगोत्री हाइवे पर बॉर्डर को जोड़ने वाली सड़क भैरव घाटी से लेकर झाला तक बड़ी संख्या में देवदार के पेड़ कटने हैं. पर्यावरण से जुड़े लोगों ने देवदार के पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधकर इसका विरोध जताया है. यही नहीं  शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने रक्षासूत्र बांध कर इन पेड़ों को बचाने की अपील की. प्रयावर्णविदों ने देवदार के ऐसे पेड़ जो सड़क पर अधिक संख्या में कट रहे है उन्हें कम से कम काटने की राय रखी है.

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह सड़क जंहा बॉर्डर के लिए जरूरी है, वहीं, सीमांत क्षेत्र के गांव और धार्मिक महत्व से गंगोत्री धाम यात्रा के लिए जरूरी है. पर्यावरण प्रेमी का आरोप है कि 7 हजार से ज्यादा देवदार के वृक्ष हाइवे पर कटने हैं. कुल 15 किलोमिटर के एरिया 6822 पेड़ चिन्हित है, जिनमे देवदार 3384 पेड़ चिन्हित हैं, जिसमे 1390 पेड़ कटने है और बाकी सभी ट्रांस लोकेशन होने है. कुल मिला सभी पेड़ो की बात करें 2457 पेड़ कटने हैं. सभी 4395 पेड़ ट्रांस लैक्टेड किया जाएगा.

चमोली में भी 5000 से ज्यादा पेड़ों के काटने का मामला

दूसरी तरफ उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्र चमोली में भी 5000 से ज्यादा पेड़ों के काटने का मामला गरमाने लग गया है. दरअसल चमोली में वनों की आग को नियंत्रण पाने में शासन प्रशासन पूरी तरह से विफल रहा है. वनाग्नि की घटनाओं की रोकथाम के लिए वन विभाग द्वारा एक योजना बनाई गई है, जिसमें अलग क्षेत्रों  में फायर लाइन काटने के लिए 5 हजार से अधिक पेडों को काटा जाएगा.

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ये उस धरती में हो रहा है, जिसमें चिपको आंदोलन चलाया गया था. चिपको की धरती में सत्तर के दशक में रेणी की महिलाओं ने पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी, जिसके बाद विश्व भर में गौरा देवी ने प्रसिद्धि प्राप्त की थी. गौरा देवी की प्रेरणा से आज भी चमोली में समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर हलचल देखी जा सकती है. वनों में हर वर्ष लगने वाली आग वन्यजीवों एवं पर्यावरण के लिए खतरा बनती जा रही है. विभाग वनों की आग को रोकने में पूरी तरह से फेल नजर आता है. पर्यावरण को नुकसान के साथ लाखों प्रजाति के पेड़-पौधे वन्य जीवों को जीवन खतरे में है. आग की घटनाओं को कम करने के लिए वन विभाग की ओर से एक योजना बनाई गई है, जिसमें आग लगने के सबसे संवेदनशील जगहों पर फायर लाइनें काटी जायेंगी, जिससे जंगलों में आग नहीं फैलेगी.

लेकिन उसे गौरा देवी की धरती पर अब 5000 से ज्यादा पेड़ों को काटने का एक बड़ा प्लान बनाया गया है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फायर लाइन के लिए अलग-अलग स्थानों पर 14 किमी के दायरे में 5 हजार से अधिक हरे पेड़ काटे जायेंगे, जिसके लिए वन निगम को निर्देशित किया जा रहा हैं. उन्होने यह भी बताया कि 40 वर्ष पूर्व पर्यावरण संरक्षण को देख्ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हरे पेड़ो के कटान पर रोक लगा दी थी. लेकिन वर्तमान समय में यह रोक हटा दी गई है, वनों की आग से वन्य जीवों के साथ करोड़ों की वन संपदा को भी भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस नुकसान से बचने के लिए इस तरह का सख्त निर्णय लिया गया है.

गंगोत्री और चमोली की तरह ही देहरादून ऋषिकेश हाईवे पर भानियावाला से ऋषिकेश तक करीब 3400 पेड़ काटे जाने हैं. पेड़ों पर निशान भी लगा दिया गया है, लेकिन इस मामले को वन्य प्रेमी और स्थानीय लोग हाई कोर्ट में ले गए थे. उनका कहना है कि पेड़ों को नहीं काटा जाना चाहिए. इसके बाद हाल ही में कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की और राज्य सरकार और NHAI से से सुझाव मांगे हैं. उत्तरखण्ड हाईकोर्ट ने एनएचएआई के द्वारा ऋषिकेश के भानियावाला में बनाए जा रहे फोर लेन सड़क की जद में आ रहे करीब 3400 पेड़ों के कटान के मामले पर सुनवाई की थी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया कि पूर्व में दिए गए निर्देशों के अनुरूप पेड़ो का ट्रांसप्लांट नही हुआ है और न ही नियमो के तहत अंडर पास बनाये जा रहें है. मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार, केंद्र सरकार व एनएचएआई से कहा है कि इस समस्या को हल करने के लिए बैठक कर सुझाव कोर्ट में पेश करें. 

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मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 30 दिसम्बर की तिथि नियत की है. ऋषिकेश भानियावाला के बीच सड़क चौड़ीकरण के लिए 3 हजार से अधिक पेड़ों को काटने के लिए चिन्हित किया गया है, जो कि एलीफेंट कॉरिडोर के मध्य में आता है. जिसकी वजह से हाथी कॉरिडोर सहित अन्य जंगली जानवर  प्रभावित हो सकते है.

पर्यावरणविद सुरेश भाई ने कहा है कि, "हिमालय बहुत संवेदनशील पर्वत श्रृंखला है. 9000 फीट की ऊंचाई पर इस तरह पेड़ों का काटना बेहद गलत है क्योंकि लगातार वैज्ञानिक इस बात को बता रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है. तापमान बढ़ रहा है, जहां बर्फबारी होनी चाहिए वहां बारिश हो रही है. सड़क चौड़ीकरण या फिर अन्य निर्माण के लिए पेड़ो की बलि आने वाले समय के लिए बड़ा खतरा है. हिमालय को बचाना है तो यहां की जैव विविधता को बचाना होगा. अगर ऊंचाई पर पेड़ टिके रहेंगे तो हिमालय पर ग्लेशियर भी टिके रहेंगे."

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