संभल हिंसा का एक साल... CM योगी का एक्शन और यूपी की राजनीति की इनसाइड स्टोरी

संभल हिंसा को एक साल हो चुका है. अब संभल सिर्फ कानून-व्यवस्था की कसौटी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तीसरी पारी की राजनीति में एक प्रतीक बनकर उभर रहा है. हिंसा के बाद संभल चाय की दुकानों से लेकर विधानसभा और संसद तक चर्चा का हिस्सा बना रहा.

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  • 24 नवंबर 2024 को संभल में हुई हिंसा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गहरा प्रभावित किया.
  • 2027 विधानसभा चुनाव में संभल का सामाजिक और राजनीतिक महत्व है.
  • CM योगी ने संभल को सख्त कानून-व्यवस्था मॉडल का प्रतीक बनाकर तीसरी पारी की राजनीति में अहम स्थान दिया है.
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24 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के संभल में भड़की हिंसा ने न सिर्फ पश्चिमी यूपी बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति को हिला दिया था. एक मस्जिद सर्वे से शुरू हुआ विवाद अफवाहों, पत्थरबाजी और आगजनी में बदल गया. चार लोगों की मौत हुई, 28 पुलिसकर्मी घायल हुए, 7 एफआईआर दर्ज हुईं और 138 गिरफ्तारियां हुईं. हिंसा की आग में जला ये शहर कई दिनों तक ठप रहा. वक्त बीता. हालात सुधरे और संभल फिर खड़ा हुआ. लेकिन अब यह संभल दोगुनी मजबूती के साथ खड़ा और सबकी निगाहें अब इस शहर की ओर टिकी रहती हैं. 

हिंसा को एक साल हो चुका है. अब संभल सिर्फ कानून-व्यवस्था की कसौटी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तीसरी पारी की राजनीति में एक प्रतीक बनकर उभर रहा है.

हिंसा के बाद संभल चाय की दुकानों से लेकर विधानसभा और संसद तक चर्चा का हिस्सा बना रहा. ऐसे में हमने यह जानने की कोशिश की है कि कैसे अतीत, वर्तमान और भविष्य, तीनों पर यह जिला अपनी छाप छोड़ रहा है. इसी दौरान एक और पुराना कुआं खोदा जा रहा है. रस्तोगी परिवार का दावा है कि 1978 के दंगों में रामचरण रस्तोगी की हत्या कर उनका शव इसी कुएं में डाला गया था. जिलाधिकारी राजेंद्र पेन्सिया के आदेश पर खुदाई शुरू हो चुकी है.

PAST: संभल का अतीत: छाया में दबा एक ऐसा जिला जहां नेटवर्क लंबे समय से सक्रिय रहे

संभल एसपी कृष्णन कुमार बिश्नोई से बातचीत में उन्होंने कहा कि, 'एक समय ऐसा था जब संभल के कुछ इलाके चरमपंथ और अपराधी नेटवर्क के गढ़ बन गए थे.' उन्होंने बताया कि दीपासराय बार-बार इंटेलिजेंस दस्तावेजों में सामने आता रहा है. अल-कायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट के चीफ रहे मौलाना आसिम उमर का ताल्लुक भी इसी इलाके से रहा. 2012 में गुमशुदा हुए मोहम्मद उस्मान के पाकिस्तान की जेल में मिलना भी संभल की सुरक्षा छवि को सवालों में डालता रहा.

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हाल की हिंसा की जांच में मुल्ला अफरोज का नाम सामने आया, जिसके गैंगस्टर शारीक साटा से संपर्क होने के आरोप हैं. जिसके कथित कनेक्शन दाऊद इब्राहिम और ISI तक जाते बताए गए. स्थानीय चेहरे, जैसे मुल्ला वारिस और मुल्ला गुलाम भी इसी इलाके से जुड़े हैं, जिससे यह धारणा और मजबूत हुई कि संभल के कुछ हिस्से संवेदनशील हैं.

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इस घटना ने BJP के 'टफ CM' नैरेटिव को मजबूत किया. तेजी से हुई गिरफ्तारियां, बुलडोज़र कार्रवाई और कानून-व्यवस्था पर सख्त संदेशों ने योगी आदित्यनाथ की ज़ीरो-टॉलरेंस छवि को धार दी. उन्होंने कई भाषणों में संभल का ज़िक्र करते हुए इसे अपनी सख्त प्रशासनिक नीति का उदाहरण बताया. वहीं विपक्ष ने इसे राज्य की ‘अति-प्रतिक्रिया' बताया.

एक साल बाद संभल शासन का प्रतीक बनकर उभर रहा है और यह योगी के तीसरे कार्यकाल की तैयारियों में अहम भूमिका निभा रहा है.

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PRESENT: जब BJP अयोध्या-मथुरा-काशी पर दांव लगा रही है, योगी अपनी राजनीति संभल में गढ़ रहे हैं

BJP-RSS के लिए अयोध्या, मथुरा और काशी सांस्कृतिक-वैचारिक स्तंभ हैं, जहां हिंदू विरासत और पहचान की राजनीति गूंथी जाती है. इसके उलट, संभल योगी आदित्यनाथ का 'पर्सनल पॉलिटिकल प्रोजेक्ट' बनकर उभरा है. यहां वह अपनी गवर्नेंस मॉडल-कानून-व्यवस्था, बुलडोज़र और सख्त प्रशासन को ‘फील्ड टेस्ट' कर रहे हैं.

BJP जहां अयोध्या-काशी को राष्ट्रव्यापी सांस्कृतिक मुद्दों के रूप में पेश करती है, वहीं योगी संभल को अपने प्रशासनिक ब्रांड की प्रयोगशाला बना चुके हैं. उनके लिए यह जिला सिर्फ एक सीट नहीं, उनकी राजनीतिक छवि का परीक्षण है.

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FUTURE: 2027 विधानसभा चुनाव के लिए संभल क्यों है अहम

संभल की सामाजिक बनावट, कास्ट इक्वेशन, बड़ा मुस्लिम वोट, स्थानीय पावर सेंटर, इसे राजनीतिक रूप से जटिल जिला बनाती है. हिंसा के बाद सरकार ने तेज कार्रवाई और बुलडोज़र मॉडल को 'योगी बाबा स्टाइल' के रूप में प्रचारित किया, जो गैर-यादव OBC, जाट और ऊंची जातियों में खूब गूंजी. वहीं मुसलमानों में इसे राजनीतिक रूप से टार्गेटेड कार्रवाई माना गया.

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फिर भी BJP को यहां सरकारी योजनाओं- राशन, आवास, चिकित्सा सहायता, महिलाओं को लक्षित स्कीमें का लाभ मिल रहा है.यह सब मिलकर उस जिले में पार्टी को मजबूत कर रहा है, जहां वह पारंपरिक रूप से पिछड़ी रही है.

चुनावी लिहाज से संभल का असर बड़ा नहीं, लेकिन प्रतीकात्मक प्रभाव बहुत गहरा है. जैसे पिछले वर्षों में कैराना या प्रयागराज रहा. Yogi इसे अपने 'कठोर शासन' की मिसाल की तरह पेश कर रहे हैं; विपक्ष इसे 'ओवररीच' कहकर अल्पसंख्यक वोट को सक्रिय करना चाहता है.

योगी का 'संभल मॉडल'

NDTV से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार समीर चौगांवकर ने कहा कि योगी आदित्यनाथ दो स्तंभों पर अपनी राजनीति खड़ी करते हैं. कानून-व्यवस्था का बदलाव और खुलकर हिंदुत्व की राजनीति. उनके अनुसार, योगी पहले ही 2027 की तैयारी में जुट चुके हैं. बार-बार संभल में हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाना, 1978 के दंगों की चर्चा और 68 तीर्थ स्थलों व 19 प्राचीन कुओं के पुनर्जीवन को अपनी उपलब्धियों के तौर पर पेश करना इसका हिस्सा है.

2027 के चुनावी परिपेक्ष्य में माना जा रहा है कि संभल शायद अपने क्षेत्रफल या सीटों से ज़्यादा राजनीतिक नैरेटिव में अपना वजन दिखाएगा. यह सुरक्षा, पहचान और योगी की तीसरी पारी की महत्वाकांक्षाओं पर असर डालने वाला इलाका बन चुका है.

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