UP मदरसा एक्ट संवैधानिक है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

यूपी सरकार के वकील ASG के एम नटराजन ने कहा कि यूपी मदरसा एक्ट को कानून को पूरी तरह से रद्द करना गलत होगा. यह विधायी शक्ति का मामला नहीं है, बल्कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, जिसके लिए पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है.

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नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में यूपी मदरसा एक्‍ट मामले (UP Madarsa Act Case) को लेकर सुनवाई पूरी हो गई है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि यूपी मदरसा एक्‍ट संवैधानिक है या नहीं. यूपी के मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया.

इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना पक्ष रखा. इसके साथ ही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ बड़ी टिप्पणियां की हैं. CJI ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या मदरसा का कोई भी छात्र NEET की परीक्षा में शामिल हो सकता है. 

यूपी सरकार ने मदरसा एक्ट का समर्थन किया 

  1. यूपी सरकार की तरफ से पेश हो रहे वकील ASG केएम नटराजन ने दलील दी. उन्होंने कहा कि मदरसा एक्ट के केवल उन प्रावधानों की समीक्षा होनी चाहिए जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं
  2. यूपी सरकार ने कहा कि ऐक्ट को पूरी तरह खारिज करना उचित नहीं है.
  3. ⁠एक सरकारी आदेश के अनुसार मदरसा स्कूलों को अन्य स्कूलों के समकक्ष माना गया है.

यूपी सरकार के वकील ASG के एम नटराजन ने कहा कि यूपी मदरसा ऐक्ट को कानून को पूरी तरह से रद्द करना गलत होगा. यह विधायी शक्ति का मामला नहीं है, बल्कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है, जिसके लिए पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत  नहीं है. यूपी सरकार ने कहा कि ऐक्ट के केवल उन्ही प्रावधानों का परीक्षण किया जाना चाहिए जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. सरकारी आदेश के तहत मदरसा स्कूलों को अन्य स्कूलों के ही समान माना गया है.  

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CJI का बड़ा सवाल : CJI ने पूछा कि क्या मदरसा का कोई भी छात्र NEET की परीक्षा में शामिल हो सकता है?

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यूपी सरकार का जवाबः  यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इसके लिए छात्र को फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बायोलॉजी ( PCB ) से पास होने की जरूरत होती है.

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यूपी मदरसा बोर्ड की सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस पारदीवाला ने कहा - 

- देश के लोकाचार को याद रखें
- न केवल मुस्लिम संस्थान बल्कि कई संस्थान जैसे ईसाई, बौद्ध, हिंदू धार्मिक शिक्षा देते हैं
- वेद, स्मृति, शास्त्र, उपनिषद पढ़ाए जाते हैं, वैदिक पाठशालाएं और गुरुकुल हैं
- भारत विविध धर्मों का संगम है
- हम आपकी चिंता को साझा करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है (यह सुनिश्चित करना कि बच्चे योग्य नागरिक बनें)
- हर कोई हमेशा धार्मिक शिक्षक नहीं रहेगा, कोई 15 साल का बच्चा कह सकता है कि मैं अकाउंटिंग सीखना चाहता हूं और दुकानदार बनना चाहता हूं
- लेकिन इस कृत्य को खारिज करना बच्चे को नहाने के पानी से बाहर फेंकने जैसा है. 

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CJI ने इस मामले में कहा कि बौद्ध भिक्षुओं को कैसे प्रशिक्षित किया जाता है. यदि सरकार कहती है कि उन्हें कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाए तो इस मामले को लें.  यह देश का लोकाचार है तो आपका तर्क सभी धार्मिक स्कूलों वैदिक स्कूल, जैन स्कूल आदि सब पर पर लागू होगा. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR पर उठाए सवाल हैं और ⁠CJI चंद्रचूड़ ने पूछा - 

-  आपने सिर्फ मदरसों पर ही सवाल क्यों उठाए? आपकी दिलचस्पी सिर्फ मदरसों में ही क्यों है? 
- आपने क्या सभी समुदाय के भेद से ऊपर उठकर बाकी अन्य धार्मिक समुदायों के शिक्षण संस्थाओं को भी शामिल किया 
-क्या आपने कभी ऐसे निर्देशन भेजे हैं कि अन्य धर्मों के शिक्षण संस्थानों में आधुनिक विज्ञान विषय भी पढ़ाए जाएं. 

वहीं जस्टिस पारदीवाला ने पूछा - 

- क्या आपने उनका पूरा सिलेबस पढ़ा है? 
- बिना पूरा सिलेबस पढ़े आप धार्मिक इंस्ट्रक्शन शब्द तक कैसे पहुंचे? 
- लगता है आप इस शब्द पर मुग्ध और चमत्कृत हैं. आपके दिमाग में यही सब घूम रहा. 
- आपकी दलीलें सही तथ्यों पर आधारित नहीं हैं. 

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष से वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद  ने दलील दी कि मुस्लिम बहुल इलाकों में अगर पर्याप्त मात्रा में स्कूल खोले जाएं तो इन मदरसों  का महत्व खुद-ब-खुद कम हो जाएगा. 

जमीयत उलमा ए हिंद सहित कई याचिकाकर्ताओं की अर्जियों पर कोर्ट ने दो दिन सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, एडिशनल सॉलीसिटर जनरल केएम नटराज सहित कई दिग्गज वकीलों ने दलीलें रखीं. इस मामले में मेनका गुरुस्वामी, अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद, माधवी दीवान, एमआर शमशाद और गुरु कृष्णकुमार ने दलीलें रखीं.

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