इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बुलंदशहर के भ्रूण लिंग परीक्षण से जुड़े एक मामले में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अपराध की विवेचना में पुलिस लिंग परीक्षण कराने के लिए अधिकृत नहीं है. हाईकोर्ट ने भ्रूण के लिंग परीक्षण करने के आरोपी एक डॉक्टर के खिलाफ चल रहे केस की कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 में दाखिल डॉ ब्रिजपाल सिंह की याचिका को मंजूर करते हुए दिया है.
याचिकाकर्ता डॉ ब्रिजपाल सिंह के खिलाफ बुलंदशहर के कोतवाली शहर थाने में 2017 में आईपीसी की धारा 315, 511 और गर्भाधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, Pre-conception and Pre-natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act 1994 (PC&PNDT Act) की धारा 4/5(2)6(ए)/23/25 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था.
आरोपी डॉक्टर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दाखिल कर बुलंदशहर के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट द्वारा 2 जनवरी 2018 को जारी हुए सम्मन आदेश को रद्द करने के साथ-साथ आपराधिक मामले की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी.
बुलंदशहर के कोतवाली शहर थाने में तहसीलदार खुर्जा ने 2017 में यह एफआईआर दर्ज कराई थी. डॉ ब्रिजपाल सिंह समेत अन्य डॉक्टर पर आरोप लगाया गया कि शोभा राम अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के भ्रूण के लिंग की पहचान की जा रही है. पुलिस टीम घटना की गवाह बनी और हस्ताक्षर किए. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की. सीजेएम ने संज्ञान लेकर आरोपियों को सम्मन जारी किया जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में चुनौती दी गई थी. कोर्ट में दलील दी गई कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम (PC&PNDT Act) के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती.
कोर्ट में कहा गया कि केवल 'सक्षम प्राधिकारी' ही शिकायत दर्ज करा सकता है. पुलिस को जांच की अनुमति नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस कानून में पुलिस रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट को संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है. सक्षम प्राधिकारी की शिकायत पर ही मजिस्ट्रेट संज्ञान ले सकता है. इस आधार पर कोर्ट ने आरोपी डॉ ब्रिजपाल सिंह की याचिका को मंजूर करते हुए मुकदमे की पूरी कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि लिंग परीक्षण से जुड़े अपराध की जांच का अधिकार पुलिस के पास नहीं है. गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) के तहत सिर्फ सक्षम प्राधिकारी को ही कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है.
कोर्ट ने कहा कि लिंग परीक्षण कानून अपने में पूर्ण है इसमें जांच, तलाशी , जब्ती और शिकायत दर्ज करने जैसे सभी आवश्यक प्रावधान शामिल हैं. इसके अनुसार केवल सक्षम प्राधिकारी ही कार्यवाही कर सकता है. कोर्ट ने आरोपी डॉक्टर के खिलाफ केस रद्द कर दिया.
हाईकोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम से संबंधित प्रश्नों के संबंध में विभिन्न हाईकोर्टों के अलग-अलग विचार हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा निपटाया जाना आवश्यक है जिसमें यह प्रश्न शामिल हैं-
1. क्या पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करना केवल इसलिए स्वीकार्य है क्योंकि पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बना दिया गया है?
2. क्या पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए पुलिस जांच की अनुमति है? और पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए प्राप्त शिकायतों की जांच कौन कर सकता है?
3. क्या पुलिस द्वारा जांच के बाद प्रस्तुत आरोप पत्र पर सक्षम मजिस्ट्रेट पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत अपराध का संज्ञान ले सकता है?
हाईकोर्ट ने कहा कि सुविचारित राय में यह आवश्यक है कि इन प्रश्नों का सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिकारपूर्वक निपटारा किया जाए. इसके मद्देनजर, यह प्रमाणित किया जाता है कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 134(1)(सी) के साथ अनुच्छेद 134ए के तहत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के लिए उपयुक्त मामला है ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधिकारिक घोषणा की जा सके.