इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर धर्मांतरण को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने मोहम्मद शाने आलम नाम के शख्स को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि किसी भी धर्म का व्यक्ति, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए जैसे कि फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला, अगर वो किसी व्यक्ति का जबरन गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर किसी का धर्मांतरण कराता है तो वो यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत जिम्मेदार होगा.
मौलाना पर एक पीड़िता को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने और एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह कराने का आरोप है.
वकील ने कहा कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वो 2 जून से जेल में बंद है. उसके 11 मार्च को हुए निकाहनामा पर जिस पर मोहर और उसके सिर्फ हस्ताक्षर हैं और इसके अलावा उसकी कोई भूमिका नहीं है.
वहीं सरकारी अधिवक्ता ने याची की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता जो खुद सूचना देने वाली है, उसे सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपदस्थ किया गया कि वो एक कंपनी में काम कर रही थी. आरोपी अमान ने उसका शारीरिक शोषण किया और उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया और 11 मार्च 2024 को याची 'धर्म परिवर्तक' द्वारा उसका निकाह कराया गया.
हाईकोर्ट ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता/सूचनाकर्ता के बयान को ध्यान में रखा, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह कराया गया था.
बता दें कि कुछ दिन पहले भी जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने धर्मांतरण से जुड़े कई मामलों में सुनवाई करते हुए अपनी चिंता व्यक्त की और टिप्पणी करते हुए कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता में धर्मांतरण का सामूहिक अधिकार शामिल नहीं है. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह व्यक्तिगत अधिकार धर्म परिवर्तन कराने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता.