इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरन धर्मांतरण और निकाह कराने वाले मौलाना को जमानत देने से किया इनकार

सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि आरोपी अमान ने पीड़िता का शारीरिक शोषण किया और उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया. इलाहाबाद से संवाददाता दीपक गंभीर की रिपोर्ट...

Advertisement
Read Time: 3 mins
प्रयागराज:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर धर्मांतरण को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच ने मोहम्मद शाने आलम नाम के शख्स को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि किसी भी धर्म का व्यक्ति,  चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए जैसे कि फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला, अगर वो किसी व्यक्ति का जबरन गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर किसी का धर्मांतरण कराता है तो वो यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत जिम्मेदार होगा.

मौलाना पर एक पीड़िता को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने और एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह कराने का आरोप है.

आरोपी याची शाने आलम के खिलाफ गाजियाबाद के थाना अंकुर विहार में यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज है. इस मामले में याची ने अपनी जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. याची के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि आवेदक शाने आलम मौलाना यानी धार्मिक पुजारी है और उसने केवल आरोपी अमान के साथ पीड़िता का निकाह कराया था और पीड़ित महिला को जबरन इस्लाम में परिवर्तित नहीं किया था.

वकील ने कहा कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वो 2 जून से जेल में बंद है. उसके 11 मार्च को हुए निकाहनामा पर जिस पर मोहर और उसके सिर्फ हस्ताक्षर हैं और इसके अलावा उसकी कोई भूमिका नहीं है.

वहीं सरकारी अधिवक्ता ने याची की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता जो खुद सूचना देने वाली है, उसे सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपदस्थ किया गया कि वो एक कंपनी में काम कर रही थी. आरोपी अमान ने उसका शारीरिक शोषण किया और उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया और 11 मार्च 2024 को याची  'धर्म परिवर्तक' द्वारा उसका निकाह कराया गया.

हाईकोर्ट ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज पीड़िता/सूचनाकर्ता के बयान को ध्यान में रखा, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह कराया गया था.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अधिनियम, 2021 की धारा 8 में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे शिड्यूल-I में निर्धारित प्रपत्र में कम से कम साठ दिन पहले एक घोषणा पत्र देना होगा. इसके लिए उसे जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के यहां आवेदन करना होगा. विशेष रूप से जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत किया जाएगा कि वो अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है वो भी अपनी स्वतंत्र सहमति से और बिना किसी बल, दबाव, अनुचित प्रभाव या प्रलोभन के.

बता दें कि कुछ दिन पहले भी जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने धर्मांतरण से जुड़े कई मामलों में सुनवाई करते हुए अपनी चिंता व्यक्त की और टिप्पणी करते हुए कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता में धर्मांतरण का सामूहिक अधिकार शामिल नहीं है. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह व्यक्तिगत अधिकार धर्म परिवर्तन कराने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Lebanon -Syria Pager Attack: हिज़्बुल्लाह को निशाना बना रहा इज़रायल? क्या है मंशा?
Topics mentioned in this article