डी-सेंट्रलाइज़्ड डिजिटल करेंसी, यानी क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) की दुनिया में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय मुद्रा बिटकॉयन (Bitcoin) के भाव हाल ही में, यानी रविवार को ही सर्वकालिक उच्चतम स्तर को छू गए थे, और इतिहास में पहली बार डिजिटल करेंसी ने 80,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹67,50,860) का आंकड़ा पार किया था.
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पिछले कुछ सालों में क्रिप्टोकरेंसी ने काफ़ी तरक्की की है, और दुनियाभर के देशों में मान्यताप्राप्त करेंसी नहीं होने के बावजूद यह लगातार आगे बढ़ रही है. इस वक्त इसकी तरक्की के पीछे की वजह अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप का जीतना रहा, क्योंकि माना जा रहा है कि ट्रंप अब क्रिप्टोकरेंसी के पक्षधर हैं, और वह अपने अगले कार्यकाल के दौरान डिजिटल करेंसी के विनियमन को सरल बना सकते हैं, जिससे क्रिप्टोकरेंसी के अहम एसेट क्लास बन जाने की संभावना बेहद प्रबल हो गई हैं.
ऐसे में आम आदमी के दिमाग में जो सबसे अहम सवाल उभरता है, वह है - क्या है क्रिप्टोकरेंसी, और कैसे किया जाता है क्रिप्टो में कारोबार. तो समझें.
क्या है क्रिप्टोकरेंसी का अर्थ...?
क्रिप्टोकरेंसी दो शब्दों - क्रिप्टो और करेंसी से मिलकर बना है. क्रिप्टो का अर्थ होता है, गुप्त, गुमनाम, छिपा हुआ या अप्रत्यक्ष और करेंसी का अर्थ होता है मुद्रा या धन. इस संदर्भ में क्रिप्टो का अर्थ है गुमनाम, यानी anonymous. इस डी-सेंट्रलाइज़्ड डिजिटल करेंसी, यानी क्रिप्टोकरेंसी में लेनदेन या खरीदफ़रोख़्त के लिए कोई बैंक या एजेंसी या बिचौलिया नहीं होता है, और समूचा लेनदेन एक कोड के ज़रिये चलता है, जिसे ब्लॉकचेन (Blockchain Technology) कहा जाता है.
क्रिप्टोकरेंसी और बिटकॉयन में क्या है फ़र्क...?
जिस तरह धन या करेंसी के तौर पर हर मुल्क में अलग करेंसी रुपया, डॉलर, यूरो आदि होते हैं, ठीक उसी तरह क्रिप्टोकरेंसी में भी अलग-अलग करेंसी हैं, जिनमें सबसे ज़्यादा लोकप्रिय भले ही बिटकॉयन हो, लेकिन कुल मिलाकर दुनियाभर में 4,000 से ज़्यादा क्रिप्टोकरेंसी हैं. बिटकॉयन के नाम से आमतौर पर कन्फ़्यूज़न होता है, लेकिन यह क्रिप्टोकरेंसी का महज़ एक प्रकार है, यानी एक लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी है बिटकॉयन. एक अन्य क्रिप्टोकरेंसी, जो बेहद लोकप्रिय है, वह है इथेरियम (Ethereum).
कुछ डर भी जुड़े हैं क्रिप्टोकरेंसी से...
क्रिप्टोकरेंसी के ख़िलाफ़ मानी जाने वाली बातों में सबसे अहम है अस्थिरता, यानी इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, और इसमें शेयर बाज़ार की ही तरह अनिश्चितता बनी रहती है और उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. क्रिप्टोकरेंसी के ख़िलाफ़ एक और बात कही जाती रही है - यह Anonymous है, यानी सरकारी तौर पर इसकी कोई मान्यता नहीं, कोई रेगुलेशन नहीं है, और इसे पकड़ा भी नहीं जा सकता, इसलिए इसका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों के लिए किया जा सकता है.
क्या है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी...?
आज की तारीख में वित्तीय मामलों से जुड़े हर शख्स ने भले ही कभी क्रिप्टोकरेंसी की खरीदफ़रोख़्त न की हो, लेकिन कभी न कभी Bitcoin, Ethereum और डॉजेकॉयन (Dogecoin) जैसी वर्चुअल करेंसी के बारे में ज़रूर पढ़ा या सुना होता है. क्रिप्टोकरेंसी के तेज़ी से बढ़ते प्रसार के पीछे ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का हाथ है. ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की शुरुआत करने वाले की वास्तविक पहचान किसी को अब तक नहीं मालूम है, लेकिन माना जाता है कि तकनीक की शुरुआत वर्ष 2008 में सातोषी नाकामोतो नामक व्यक्ति (या व्यक्तियों) ने की थी. ऑनलाइन पीयर-टु-पीयर नेटवर्क (peer-to-peer network) के अंतर्गत किए जाने वाले सभी लेनदेन को डी-सेंट्रलाइज़्ड बहीखाते में दर्ज किया जाता है. यह बहीखाता स्वतंत्र तौर पर काम करता है, और नेटवर्क पर हो रहे तमाम लेनदेन का लेखाजोखा रखता है. ब्लॉकचेन किसी भी सेंट्रल अथॉरिटी के कंट्रोल में नहीं होता, और एसेट तथा लेनदेन पर समूचा नियंत्रण यूज़रों का ही रहता है.
किसी डेटाबेस जैसा होता है ब्लॉकचेन...
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की तुलना किसी भी डेटाबेस से करने पर इसे समझना सरल हो जाता है. जिस तरह किसी भी डेटाबेस में किसी खास प्रकार के सिस्टम की सभी सूचनाएं दर्ज होती हैं, ठीक उसी तरह ब्लॉकचेन काम करता है. उदाहरण के लिए किसी अस्पताल में भर्ती मरीज़ों का डेटाबेस बनाया जाएगा, तो उसमें मरीज़, उनके रोग, उन्हें दी जा रही दवाओं, उनकी देखभाल कर रहे स्टाफ़, तथा साथ रह रहे तीमारदारों का लेखाजोखा दर्ज किया जाएगा. बस, ठीक इसी तरह ब्लॉकचेन में भी अलग-अलग वर्गों में बांटकर हर क्रिप्टोकरेंसी में लेनदेन का लेखाजोखा दर्ज किया जाता है, और इन ग्रुपों को ब्लॉक कहा जाता है. प्रत्येक ब्लॉक कई अन्य ब्लॉक से संबद्ध होता है, जो अंततः जानकारी, यानी डेटा की चेन तैयार कर देते हैं, इसीलिए इस सिस्टम को ब्लॉकचेन कहा जाता है.
बस, किसी भी सामान्य डेटाबेस और ब्लॉकचेन में एक ही मुख्य अंतर होता है. डेटाबेस के विपरीत ब्लॉकचेन को किसी प्रकार की कोई अथॉरिटी नियंत्रित नहीं करती. ब्लॉकचेन का मूल डिज़ाइन ही इस तरह का बनाया गया था कि इसे हमेशा इसके यूज़र ही चलाने वाले थे.
कैसे काम करता है ब्लॉकचेन...?
सामान्य या आम आदमी की भाषा में समझें, तो ब्लॉकचेन एक डिजिटल बहीखाता है, जिस पर होने वाला प्रत्येक लेनदेन चेन से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर पर दर्ज हो जाता है. इसका अर्थ है कि प्रत्येक लेनदेन समूचे नेटवर्क पर एक साथ एक ही वक्त पर दर्ज हो जाता है. इसे डीएलटी, यानी Distributed Ledger Technology कहते हैं. उदाहरण के लिए क्रिप्टोकरेंसी यूज़र द्वारा किया गया एक लेनदेन चेन से जुड़े सभी कम्प्यूटरों पर पहुंच जाएगा, जिसे कहीं से भी एक्सेस किया जा सकता है. लेनदेन की वैधता जांचने के लिए एल्गोरिदम मौजूद रहता है, जिसका एक्सेस सभी यूज़रों के पास होता है. लेनदेन की वैधता की पुष्टि होने के बाद लेनदेन को पिछले लेनदेन के ब्लॉक में जोड़ दिया जाता है. प्रत्येक ब्लॉक अन्य ढेरों ब्लॉक से जुड़ा होता ही है, और इसकी बदौलत मूल लेजर, यानी बहीखाते में लेनदेन की समूची जानकारी दर्ज हो जाती है.
क्या हैं ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के फ़ायदे...?
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा लाभ है कि यह पारदर्शिता को पूरी तरह बनाए रखता है, क्योंकि हर लेनदेन और रिकॉर्ड समूचे नेटवर्क पर सभी की पहुंच में रहता है. इसके अलावा, यह डी-सेंट्रलाइज़्ड प्रणाली है, यानी इस सिस्टम और इसमें मौजूद डेटा पर किसी भी एक देश, संस्था या व्यक्ति का नियंत्रण नहीं हो सकता.
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में यूज़रों की सुरक्षा भी बनी रहती है, क्योंकि यदि किसी हैकर का हमला होता भी है, तो उस हैकर को समूचे नेटवर्क में मौजूद हर ब्लॉक को कब्ज़ाना होगा, यानी हैक करना होगा. ऐसे में अगर कोई हैकर किसी एक या दो ब्लॉक पर हमला कर करप्ट कर भी देता है, तो क्रॉस-चेक कर करप्ट ब्लॉक को पहचाना जा सकता है, और उसे सिस्टम से तुरंत अलग किया जा सकता है, ताकि समूचा ब्लॉकचेन सुरक्षित रहे.