'भारतीय समाज का सौंदर्य बोध'

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  • Blogs | धर्मेंद्र सिंह |मंगलवार फ़रवरी 14, 2017 03:28 PM IST
    आज वैलेंटाइन डे है. इसके पक्ष या विपक्ष में लिखने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है. न इसके औचित्य और अनौचित्य पर कोई निर्णायक टिप्पणी करने की मंशा है. इतिहास का छोटा मोटा विद्यार्थी रहे होने की वज़ह से मन को रोकना मुश्किल होता है. मैं बिना किसी पर कोई निर्णय दिए चुपचाप अपने इसी समाज को टटोलना चाहता हूं. वैलेंटाइन डे से घबराया हुआ मेरा यह समाज ऐसे उत्सवों के प्रति क्या सदा से अनुदार रहा है? क्या यह इतना 'बंद' समाज रहा है जहां कभी भी युवा-युवतियों को खुलकर मिलने जुलने और प्रेम अभिव्यक्ति करने के मौके नहीं उपलब्ध थे...
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