फिल्म की कहानी की बात करें तो अंजलि दांगले पुलिस स्टेशन में रेप की FIR दर्ज कराती हैं. जिसके बाद कोर्ट में केस चलता है कि क्या वाक़ई ये रेप केस था? और इस केस में जिरह कर रहे हैं तरुण सालूजा और हिरल गांधी.यहां रेप का इल्ज़ाम लगा है फ़िल्म निर्देशक रोहन खुराना पर. अब ये आपको देखना है सिनमा घरों में कि ये केस क्या रूख लेगा.
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खामियां
ये फिल्म दर्शकों को थोड़ी भारी लग सकती है क्योंकि पूरी फ़िल्म में कोर्ट रूम में कार्यवाही चल रही है. वो भी वस्तिवक्ता के करीब, यानी ड्रामा ना के बराबर. दूसरी बात जो की मैं ख़ामी नहीं मानता पर फिर भी दर्शकों के नज़रिए से यहां बात करनी ज़रूरी है, कुछ लोगों को हो सकता है इस फ़िल्म का नज़रिया ना पचे. ये फ़िल्म बॉलीवुड सिनेमा की लीग से हटकर है इसलिए कुछ दर्शक शायद इसमें वो मनोरंजन ना पाए जिसके वो आदि हैं.
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खूबियां
इस फिल्म का विषय इसकी ख़ूबी है और उससे भी बड़ी बात है इस तरह के विषय को लेकर फ़िल्म बनाना वो भी बॉलीवुड की रिवायतों के ख़िलाफ़ जाकर, यानी गानों और किसी भी हिट फ़िल्म के लिए ज़रूरी माने जाने वाले पहलुओं के बिना. उससे भी ज़्यादा ज़रूरी बात ये है की यूं तो रेप केसे पर यूं तो बॉलीवुड में बहुत से फ़िल्में आईं है पर इस फ़िल्म को अहम बनाया है इसके अलग नज़रिए ने. अक्षय खन्ना और ऋचा दोनो ने इस फ़िल्म को अपने कंधों पर बख़ूबी निभाया है. फिल्म का स्क्रीन्प्ले कसा हुआ है जो फिल्म को ढीला नहीं पड़ने देता. फालतू के सीन या गाने फिल्म की गति में बाधा नहीं बनते, राइटर मनीष गुप्ता और निर्देशक अजय बहल इस फ़िल्म के लिए दोनो ही अपने अपने कार्यक्षेत्र के लिए तारीफ़ के पात्र हैं. तो मेरी सलाह आपको ये कि आप ये फ़िल्म भी ज़रूर देखें. मेरी ओर से इस फ़िल्म को 3.5 स्टार
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