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This Article is From Apr 27, 2018

Movie Review: मनोरंजक फिल्म है 'दास देव'

'दास देव' सुधीर मिश्रा का सालों पुराना सपना है लेकिन अनुराग कश्यप की 'देव डी' पहले आने की वजह से उनके इस सपने को पूरा होने में देर लगी. सुधीर मिश्रा की दास देव भी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'देवदास' से प्रभावित है.

Movie Review: मनोरंजक फिल्म है 'दास देव'
'दास देव' में राहुल भट्ट, ऋचा चड्ढा और अदिती राव हैदरी
नई दिल्ली: 'दास देव' सुधीर मिश्रा का सालों पुराना सपना है लेकिन अनुराग कश्यप की 'देव डी' पहले आने की वजह से उनके इस सपने को पूरा होने में देर लगी. सुधीर मिश्रा की दास देव भी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास 'देवदास' से प्रभावित है पर यहां सुधीर ने शेक्सपीयर के 'हैमलेट' को मिलाकर एक अलग जमीन तैयार की है. 'दास देव' की कहानी में देव नशे का दास है फिर चाहे वो ड्रग्स हो या शराब,  पर वो एक ऐसे राजनैतिक परिवार से संबंध रखता है जिसके पास सत्ता की विरासत को संभालने वाला सिर्फ देव (राहुल भट्ट) है पर उसे नशा छोड़के इस जिम्मेदारी को संभालने के लायक बनना पड़ेगा. देव के पिता विश्रमभर (अनुराग कश्यप) राजनीति में थे पर एक हादसे में उनकी मृत्यु हो जाती है और पार्टी और परिवार की जिम्मेदारी संभालते है देव के चाचा अवधेश. देव के पिता का दायां हाथ हैं नवल (अनिल जॉर्ज) और उनकी बेटी है पारो (ऋचा चड्ढा) और बचपन से ही इन दोनों के बीच में प्रेम है पर इनके प्रेम के आड़े आती है राजनीति. देव के राजनैतिक करियर को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं सहाय (दलीप ताहिल) और चांदनी (अदिती रॉय हैदरी) और पारो के अलावा चांदनी भी हैं देव के प्रेम में, लेकिन ये प्रेम कहानी उलझी है बहुत सारे राजनैतिक दांवपेंच में और ये उलझन आप फिल्म देखकर ही सुलझा सकते हैं. 

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खामियां
फिल्म की पहली कमी है इसकी लंबाई जिसकी वजह से फिल्म कुछ जगहों पर धीमी पड़ती है. खास तौर पर फिल्म का शुरुआती हिस्सा, जहां देव का किरदार जमाने के लिए नशा करते हुए उसके दृश्य हैं. दूसरी खामी है फिल्म का लंबा वॉयस ओवर जो शुरूआत में किरदारों का परिचय कराता है. मुझे लगता है इस फिल्म को 'देवदास' से प्रेरित न बताकर एक अलग फिल्म की तरह प्रमोट करना चाहिए था क्योंकि अगर आप इसे 'देवदास' की तरह देखते हैं तो इसमें आपको प्रेम की वो तीव्रता नजर नहीं आती खास तौर पर पारो के किरदार में, ये फिल्म अपने आप में एक पॉलिटिकल ड्रामा है और मुझे लगता है की इसके कई सीन्स सिर्फ देवदास की कहानी और इसके किरदारों को सही साबित करने के लिए डाले गए हैं जिसकी वजह से फिल्म का फोकस गडबड़ाता है. उत्तर प्रदेश और बिहार के जमीन पर बहुत सारी फिल्मे बन चुकी हैं जिसकी वजह से यहां रचे बसे किरदार और एम्बियंस फिल्मों में अब वो नयापन नहीं देते.

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खूबियां
सुधीर मिश्रा का संबध एक राजनैतिक परिवार से है और वो इसकी अच्छी समझ रखते हैं और अपनी इस समझ को उन्होंने कहानी में बखूबी उतारा है जिसकी वजह से फिल्म के टर्न ऐंड टविस्ट रोचक हो जाते हैं और आप को बांध कर रखते हैं, कहानी के साथ-साथ इस रुचि को बनाए रखने में फिल्म के स्क्रीन प्ले का भी हाथ है. अगर मैं फिल्म के उस हिस्से को छोड़ दूं जिसका जिक्र मैंने खामियों के दौरान किया था. फिल्म की दूसरी खूबी है, इसके कलाकारों का अभिनय जिसमें सबसे ऊपर नाम आता है राहुल भट्ट और अदिति राव हैदरी का, राहुल ने अपने किरदार का सुर कहीं नहीं छोड़ा, साथ ही उनकी डायलॉग डिलिवरी और हाव-भाव का तालमेल काफी प्रभावशाली है, वहीं अदिति अपने एक्सप्रेशन्स और सहज अभिनय से छाप छोड़ती हैं. ऋचा ठीक हैं पर इस बार उतनी असरदार नहीं. फिल्म का संगीत अच्छा है और मेरा पसंदीदा गाना है 'रंगदारी'. साथ ही बाकी गाने भी मेलोडियस हैं. फिल्म के गीत डॉ. सागर ने लिखे हैं. फिल्म के डायलॉग अच्छे हैं और सिनेमैटोग्राफी फिल्म के माहौल को बखूबी पेश करती है. सुधीर अपने निर्देशन से आपको निराश नहीं करते जिसकी वजह से मेरे हिसाब से ये फिल्म आपका मनोरंजन करेगी.

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रेटिंगः 3 स्टार
डायरेक्टरः सुधीर मिश्र
कलाकारः राहुल भट्ट, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी,दलिप ताहिल और सौरभ शुक्ला

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