उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र से सतलज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के एक हिस्से के निर्माण के लिए पंजाब में आवंटित भूमि के हिस्से का सर्वेक्षण करने के लिए कहने के कुछ ही घंटों बाद, पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने कहा कि राज्य के पास किसी अन्य राज्य के साथ साझा करने के लिए एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं है. हरियाणा में हालांकि राजनीतिक संगठनों ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य के लोग एसवाईएल का पानी पाने के लिए वर्षों से इंतजार कर रहे हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पंजाब सरकार तुरंत उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करेगी. खट्टर ने ‘एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, “मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय का धन्यवाद करता हूं. एसवाईएल हरियाणा की जीवन रेखा और हरियाणावासियों का हक है और मुझे आशा है कि पंजाब सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों पर अविलंब अमल करेगी.''
उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार से भी हमारा आग्रह है कि एसवाईएल के सर्वे का कार्य बिना देरी के पूर्ण करवा कर हरियाणा को वर्षों से लंबित हक दिलाने का काम करे.” पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि राज्य के पास एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए न तो पानी है और न ही जमीन है. वहीं विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने और एक सर्वदलीय बैठक की मांग की.
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह पंजाब में जमीन के उस हिस्से का सर्वेक्षण करे जो राज्य में सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण के लिए आवंटित किया गया था और वहां किए गए निर्माण की सीमा के बारे में आकलन करे. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से नहर के निर्माण को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच बढ़ते विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने को भी कहा.
एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और ब्यास नदियों से पानी के प्रभावी आवंटन के लिए की गई थी. इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर की परिकल्पना की गई थी, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी. हरियाणा ने अपने क्षेत्र में इस परियोजना को पूरा कर लिया है. पंजाब ने 1982 में निर्माण कार्य शुरू किया था लेकिन बाद में इसे रोक दिया. न्यायालय में सुनवाई पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पंजाब में आप के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कंग ने कहा कि एसवाईएल नहर मुद्दे पर पंजाब सरकार का स्पष्ट रुख है कि राज्य के पास किसी अन्य राज्य के साथ बांटने के लिए पानी की एक बूंद नहीं है.
उन्होंने कहा, “एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए न तो हमारे पास पानी है और न ही हमारे पास जमीन है.” उन्होंने कहा कि सरकार न्यायालय और केंद्र के समक्ष भी अपना दृष्टिकोण रखेगी. पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है और पानी इसकी जीवन रेखा है.
बाजवा ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से इस मुद्दे पर पंजाब विधानसभा का आपातकालीन सत्र बुलाने की अपील की. उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दल जानना चाहते हैं कि एसवाईएल मुद्दे पर न्यायालय में प्रदेश के अधिवक्ताओं का क्या रुख है. उन्होंने मान से इस मामले पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी अपील की. पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने भी कहा कि पंजाब के पास बांटने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है और इसलिए सर्वेक्षण कराने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि अकाली सरकार ने 2016 में एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अधिग्रहीत जमीन किसानों को वापस कर दी थी. मजीठिया ने एक बयान में कहा, “ऐसी स्थिति में पंजाब में ऐसी कोई जमीन नहीं है जिसका इस्तेमाल राज्य के नदी जल को हरियाणा ले जाने के लिए किया जा सके.” पंजाब भाजपा प्रमुख सुनील जाखड़ ने भी कहा कि पंजाब के पास बांटने के लिए पानी नहीं है.
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि वह शीर्ष अदालत के निर्देश का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब को अपनी जिद छोड़नी चाहिए और मामले में सहयोग करना चाहिए.हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष ओपी धनखड़ ने कहा कि पंजाब को इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.
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