पेरिस ओलंपिक में भारतीय महिला टेबल टेनिस टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था. ओलंपिक के इतिहास में ऐसा पहला मौका था, जब भारतीय महिला टीम राउंड ऑफ-16 से आगे बढ़ी थी. हालांकि, टीम को क्वार्टर फाइनल में जर्मनी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था. जर्मनी के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में अर्चना कामथ एकमात्र पैडलर थीं जिन्होंने अपना गेम जीता था. इस मैच में भारत को 1-3 से हार का सामना करना पड़ा था जिसके बाद उसका सफर भी थम गया था.
भले ही ओलंपिक खेलों में भारतीय महिला टीम के टेबल टेनिस इतिहास में क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंचना ऐतिहासिक कारनामा था, लेकिन अर्चना कामथ इससे खुश नहीं थीं. वहीं अब टीम की नजरें लॉस एंजेलिस ओलंपिक पर हैं, लेकिन भारतीय टीम वहां पर पदक जीत पाएगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं हैं और ऐसे में मात्र 24 साल की उम्र में युवा पैडलर अर्चना कामथ ने पेशेवर रूप से टेबल टेनिस छोड़ने का फैसला लिया है और उन्होंने विदेश में अध्ययन करने का फैसला किया है.
'पहले ही जाने का अपना मन बना लिया था'
पेरिस ओलंपिक से वतन वापसी के बाद 24 साल की कामथ ने अगले खेलों में पदक की संभावनाओं के बारे में अपने कोच अंशुल गर्ग से ईमानदारी से बातचीत की. अर्चना के रुख से स्तब्ध कोच ने एक ईमानदार प्रतिक्रिया देने का फैसला किया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अंशुल गर्ग ने कहा,"मैंने उससे कहा कि यह मुश्किल है. इसमें बहुत मेहनत लगेगी. वह दुनिया में शीर्ष 100 से बाहर है लेकिन पिछले कुछ महीनों में उसने बहुत सुधार किया है. लेकिन मुझे लगता है कि उसने पहले ही जाने का अपना मन बना लिया था और एक बार जब वह अपना मन बना लेती है, तो उसे बदलना मुश्किल होता है."
पेरिस ओलंपिक के लिए अर्चना के चयन बहस का विषय था, खासकर तब जब उन्हें अयहिका मुखर्जी से आगे जगह मिली, जिन्होंने विश्व नंबर 1 को हराया था. अपने चयन को लेकर चल रही चर्चा को किनारे रखते हुए, अर्चना ने खेल पर ध्यान दिया और क्वार्टर फाइनल में जर्मनी के खिलाफ एकमात्र गेम में भारत को जीत दिलाने में वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया. अर्चना को टॉपस, ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट (ओजीक्यू) और अन्य प्रायोजकों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन यह काफी नहीं है. ओलिंपिक पदक उन्हें इस खेल में लेकर आया, लेकिन अब उन्हें विदेश में पढ़ाई करना एक बेहतर करियर लग रहा है.
प्रतिभाशाली छात्रा हैं अर्चना कामथ
अर्चना कामथ ने इससे पहले एक बातचीत में कहा था,"मेरा भाई नासा में काम करता है. वह मेरा आदर्श है और वह भी मुझे पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करता है. इसलिए मैं अपनी सारी पढ़ाई पूरी करने के लिए समय निकालती हूं और इसका आनंद लेती हूं. मैं इसमें अच्छी भी हूं." अर्चना के पिता ने भी उनको एक प्रतिभाशाली छात्रा बताया है, जिन्होंने कहा कि पैडलर को अपने द्वारा चुने गए करियर विकल्पों पर कोई पछतावा नहीं है.
अर्चना के पिता गिरीश ने कहा,"अर्चना हमेशा अकादमिक रूप से अच्छी रही हैं और अपने टीटी करियर के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की है और हाल ही में इंटरनेशनल रिलेशंस, स्ट्रेटजी और सिक्योरिटीज में मास्टर डिग्री की आवश्यकताओं को पूरा किया है. 15 सालों तक अधिक समय तक इतने समर्पण और जुनून के साथ टेबल टेनिस खेला, जिसके चलते उन्होंने ओलंपिक में हमारे देश का प्रतिनिधित्व किया है, उन्हें लगा कि यह उनके लिए अपने अन्य जुनून- पूर्णकालिक अध्ययन को आगे बढ़ाने का समय है, उन्होंने बिना किसी पछतावे के और अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद यह कठिन कदम उठाया है."
टेबल टेनिस जैसे खेलों की वित्तीय स्थिरता चिंता का विषय है, खासकर अर्चना द्वारा पेरिस खेलों के बाद उठाए गए कठोर कदम को देखते हुए. हालांकि, आठ बार के राष्ट्रीय चैंपियन और मौजूदा टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया (टीटीएफआई) के सचिव कमलेश मेहता को लगता है कि बदलाव तेजी से हो रहा है. जबकि उपकरण और प्रशिक्षण के मामले में टेबल टेनिस सितारों को काफी समर्थन मिल रहा है, अर्चना के कोच गर्ग को लगता है कि खेल अभी भी खिलाड़ियों के लिए आजीविका का मंच बनने से बहुत दूर है. इसलिए, अर्चना का निर्णय उनके समझ में आया.
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