Happy Birthday Dhyan Chand: कैसे ध्यान सिंह से ध्यानचंद बन गए 'हॉकी के जादूगर'? बड़ी दिलचस्प है कहानी

Happy Birthday Major Dhyan Chand:मेजर ध्यानचंद का नाम शुरू से ही ध्यानचंद नहीं था, बल्कि शुरुआती दौर में ध्यान सिंह नाम से जाने जाते थे. बाद में उनका नाम बदला और वह ध्यान सिंह से ध्यानचंद बन गए. उनके नाम बदलने के पीछे की कहनी काफी दिलचस्प है.

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Happy Birthday Major Dhyan Chand: 'हॉकी के जादूगर' माने जाने वाले भारत के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म आज ही के दिन यानी 29 अगस्त साल 1905 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में हुआ था. दिग्गज खिलाड़ी के जन्मदिन को देश में प्रत्येक साल 'राष्ट्रीय खेल के दिवस' के रूप में मनाया जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि ध्यानचंद का नाम पहले ध्यान सिंह हुआ करता था, लेकिन अपने कठोर परिश्रम के बदौलत उन्होंने अपने नाम की परिभाषा ही बदल दी. बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि ध्यान सिंह का नाम आखिर कैसे ध्यानचंद पड़ा. अगर आपको भी यह दिलचस्प कहानी नहीं पता है तो हम इस ऐतिहासिक किस्से को लेकर आपके पास आए हैं, जो कुछ इस प्रकार है- 

कुछ इस तरह ध्यान सिंह से ध्यानचंद बन गए 'हॉकी के जादूगर'

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं ध्यानचंद का पहले नाम ध्यान सिंह हुआ करता था, लेकिन बाद में उनका नाम बदल गया. इसके पीछे की वजह वह शुरुआती दिनों में दिन में सिपाही की नौकरी किया करते थे, जबकि रात में हॉकी के प्रति लगाव होने की वजह से चांद की रोशनी में जीतोड़ मेहनत किया करते थे. 

ध्यानचंद के रात में अथक प्रयास को देखते हुए उनके साथी उन्हें ध्यान सिंह की जगह उनके नाम में चांद जोड़कर बुलाने लगे. यही नहीं ज्यों-ज्यों दिन आगे बढ़ा यही चांद नाम धीरे-धीरे चांद से चंद में तब्दील हो गया. मौजूदा समय में लोग उन्हें ध्यान सिंह के बजाय ध्यानचंद के नाम से याद करते हैं. 

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महज 16 साल की उम्र में सिपाही बन गए थे ध्यानचंद

आपको जानकर हैरानी होगी कि आज के 16 साल की उम्र के लोगों को जहां बच्चे के रूप में देखा जाता है. वहीं ध्यानचंद इस उम्र में सिपाही बन गए थे. भारतीय दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ने अपनी नौकरी के साथ-साथ ही अपने खेल को भी आगे बढ़ाया और बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए इतिहास में अमर हो गए. 

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ध्यानचंद ने ओलंपिक में जीते 3 गोल्ड मेडल

ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए मेजर ध्यानचंद देश के लिए कुल 3 गोल्ड मेडल जीतने में कामयाब रहे. उन्होंने पहले भारत को 1928 में गोल्ड से सम्मानित किया. उसके बाद 1932 और 1936 में भी गोल्ड पर कब्जा जमाने में कामयाब रहे. 

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बताया जाता है कि ध्यानचंद ने जब अपनी अगुवाई में जर्मनी की टीम को 6-1 से शिकस्त दी थी तब हिटलर भी उनका फैन हो गया था. जर्मन तानशाह ने उस दौरान ध्यानचंद को अपनी सेना में शामिल होने और जर्मनी की तरफ से शिरकत करने का ऑफर दिया था, लेकिन भारत दिग्गज ने यह ऑफर स्वीकार नहीं किया.

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