ठाकरे vs शिंदे की शिवसेना या बाजी मारेगी BJP, जानिए 75000 करोड़ के BMC के सत्ता की कहानी

75 हजार करोड़ का बजट. ठाकरे बनाम बीजेपी-शिंदे और मुंबई की सत्ता की लड़ाई- 2026 का BMC चुनाव केवल नगर निगम नहीं, बल्कि देश की आर्थिक राजधानी की चाबी का चुनाव है.

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  • साल 2026 में होने जा रहा बीएमसी चुनाव 75,000 करोड़ रुपये के बजट और मुंबई की सत्ता पर कब्जे की लड़ाई है.
  • ठाकरे भाइयों का साथ आना और बीजेपी-शिंदे गठबंधन ने चुनाव को हाई-वोल्टेज बना दिया है.
  • ट्रैफिक, बाढ़ और विकास जैसे मुद्दों पर मुम्बईकर जो फैसला लेंगे उसका राजनीतिक असर देशभर में पड़ेगा.
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पॉश साउथ मुंबई में खड़ी एक भव्य और ऐतिहासिक इमारत मुंबई की ताकत का प्रतीक है. इसका सालाना 75,000 करोड़ रुपये का बजट है, जो कई छोटे देशों की पूरी अर्थव्यवस्था से कहीं बड़ा है. यही वजह है कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बीएमसी का चुनाव सिर्फ एक महानगरपालिका चुनाव नहीं होता बल्कि केवल मुंबई ही नहीं देश की राजनीति की दिशा तय करने वाली लड़ाई भी बन जाता है. सीधी लहजे में कहें तो, जो बीएमसी जीतता है, वही मुंबई चलाता है. पानी, सड़क, अस्पताल, स्कूल, ट्रैफिक, ड्रेनेज, बिजली- मुंबई की रोजमर्रा की जिंदगी का हर रास्ता बीएमसी से होकर गुजरता है. लिहाजा जब बीएमसी चुनाव आता है, तो उसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई देती है.

अंग्रेजों के जमाने में बनी थी बीएमसी

मुंबई की आर्थिक ताकत कोई नई बात नहीं है. यही वजह थी कि अंग्रेजों के राज में ही यहां नगर प्रशासन को मजबूत किया गया. करीब 220 साल पहले 1807 में बीएमसी की शुरुआत एक छोटे से सिस्टम Court of Petty Sessions के तौर पर हुई. इसमें दो मजिस्ट्रेट और एक जस्टिस ऑफ पीस होते थे. फिर 1865 में इसे मौजूदा स्वरूप मिला. एक कॉर्पोरेट बॉडी के तौर पर इससे म्युनिसिपल कमिश्नर और जस्टिस ऑफ पीस को जोड़ा गया. 1872 में नियमित नगर निगम बना, जिसमें 64 सदस्य थे और वहां केवल टैक्स भरने वालों को ही वोट देने का हक था. समय के साथ लोकतंत्र का दायरा बढ़ा. 1922 में किराया देने वालों को भी वोट देने का अधिकार मिला और 1931 में जेबी बोमन बेहराम मुंबई के पहले चुने हुए मेयर बने.

आजादी के बाद बदली तस्वीर

भारत आजाद हुआ तो 1948 में पहली बार सही मायनों में बीएमसी चुनाव हुए. 1950 में मुंबई के उपनगर भी बीएमसी में शामिल हुए. आज बीएमसी का दायरा 480.24 वर्ग किलोमीटर में फैला है. 2001 की जनगणना के मुताबिक आबादी 1 करोड़ 19 लाख से ज्यादा थी, जो निश्चित तौर पर करीब 25 साल बाद, अब कहीं ज्यादा हो चुकी है. देश के टैक्स और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा हिस्सा होने के नाते इसकी आर्थिक अहमियत है, तो शिक्षा और रिसर्च, विज्ञान एवं तकनीकी के केंद्रों में इसकी अहमियत होने की वजह से मुंबई की तरक्की का बहुत सारा श्रेय शहर की स्थानीय सत्ता के शुरुआती विकास को जाता है.

एक इमारत, जो खुद मुंबई है

बीएमसी सिर्फ एक दफ्तर नहीं, बल्कि मुंबई की पहचान है. एफ डब्ल्यू स्टीवंस की डिजाइन की गई इस विक्टोरियन गोथिक इमारत को छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के साथ शहर की शान माना जाता है. 1893 में बनी इस इमारत का 235 फीट ऊंचा टावर, दीवारों पर बने गार्गोयल्स, चिमेराज और ग्रिफिन्स जैसे वास्तुशिल्प इसे खास बनाते हैं. फूल के डिजाइन और छोटी-छोटी मूर्तियों में शहर की पहचान और स्थानीय वन्यजीवों को भी दिखाया गया है.

75000 करोड़ का सवाल

बीएमसी चुनाव इतना बड़ा इसलिए है क्योंकि यहां पैसों की ताकत जबरदस्त है. इस वित्तीय वर्ष में बीएमसी का अनुमानित बजट 75,000 करोड़ रुपये है, जो 2024-25 की तुलना में करीब 20% ज्यादा है. तुलना करें तो बेंगलुरु नगर निगम का बजट सिर्फ 20,000 करोड़ रुपये के आसपास है. इसी वजह से बीएमसी को एशिया की सबसे अमीर नगरपालिकाओं में गिना जाता है.

लेकिन सवाल यही है- इतना पैसा होने के बावजूद आम मुम्बईकर खुश क्यों नहीं? 

वजह ट्रैफिक जाम, मॉनसून के दौरान शहर में बाढ़ जैसे हालात की वजह से लोगों के काम करने के घंटों का नुकसान और आर्थिक नुकसान यहां आम बात हो गई है. सड़कों की खराब हालत और शहर में घरों की कमी जैसी चुनौतियों से ड्रेनेज, सैनिटेशन, पानी की सप्लाई और स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवाओं पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है. इस वजह से लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट के तौर पर बीएमसी के परफॉर्मेंस पर ध्यान दिया जा रहा है. यही वजह है कि बीएमसी का कामकाज हर चुनाव में सवालों के घेरे में रहता है.

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शिवसेना से बीएमसी का पुराना रिश्ता

बीएमसी की बात हो और शिवसेना का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना बनाई और 1968 में ही पार्टी ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में 140 में से 42 सीटें जीत लीं. तब से शिवसेना लगातार मजबूत होती गई. 2006 में राज ठाकरे के अलग होकर नई पार्टी एमएनएस बनाने के बाद भी शिवसेना बीएमसी में सबसे बड़ी ताकत बनी रही और उसकी सीटें लगभग 80 बनी रही. 2017 के चुनाव में शिवसेना ने 84 सीटें जीतकर मेयर पद अपने पास रखा.

क्या ठाकरे ब्रदर्स साख बचा पाएंगे?

इस बार सबसे बड़ा बदलाव है ठाकरे भाइयों का साथ आना होगा. उद्धव ठाकरे की शिवसेना में पहले राज ठाकरे की वजह से 2005 में, फिर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 2022 में टूट हुई और तब पार्टी के अधिकांश पार्षद, विधायक और सांसद उनके साथ हो लिए. अब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एलान किया है कि दोनों साथ मिलकर 2026 में बीएमसी चुनाव लड़ेंगे. अब यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि ठाकरे नाम की साख बचाने की लड़ाई भी बन गया है.

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नंबर-1 की कुर्सी पर बीजेपी की नजर

बीजेपी भी बीएमसी में सबसे बड़ी पार्टी बनना चाहती है. 2017 में बीजेपी ने 82 सीटें हासिल की थीं, पर मेयर का पद गठबंधन की सहयोगी शिवसेना को मिला था क्योंकि उसने बीजेपी से दो अधिक सीटें हासिल की थीं. इस बार बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. पार्टी चाहती है कि को सबसे अधिक सीटें जीते और पूरी मुंबई पर राजनीतिक कंट्रोल उसे हासिल हो. बीएमसी चुनाव में वर्चस्व बनाना लंबे समय से बीजेपी का मिशन रहा है.

एकनाथ शिंदे के लिए अग्निपरीक्षा

यह चुनाव एकनाथ शिंदे के लिए सबसे मुश्किल है. वे खुद को शिवसेना का असली वारिस बताते हैं. यह उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई है. शिंदे जमीन से जुड़ाव की वजह से जाने जाते हैं. ठाणे में उनकी पकड़ मजबूत है, पर मुंबई ठाकरे परिवार का गढ़ रही है, शिंदे मुंबई पर भी कंट्रोल चाहते हैं ताकि यह साबित कर सकें कि शिवसेना की विरासत उन्हीं की है. यहीं पर शिवसेना और बीजेपी की महत्वकांक्षाएं टकराती हैं. 
बीजेपी के साथ गठबंधन के बावजूद, अंदर ही अंदर मुकाबला भी है. यह चुनाव तय करेगा कि क्या शिंदे मुंबई में भी उतने ही ताकतवर हैं, जितने पड़ोसी ठाणे में हैं, जो कि उनका गढ़ है.

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न्यूयॉर्क से तुलना क्यों?

कुछ ही मेयर का नगर निगम के चुनाव ऐसे होते हैं जिन पर BMC चुनाव की तरह दिलचस्पी होती है, लेकिन इस बार बीएमसी चुनाव की तुलना न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव से की जा रही है, इसने दुनिया का ध्यान खींचा है. हाल ही में जोहरान ममदानी की न्यूयॉर्क मेयर का चुनाव जीतने के बाद सोशल मीडिया पर लोग मुंबई और न्यूयॉर्क की तुलना करने लगे. हालांकि मुंबई में मेयर का पद ज्यादातर औपचारिक है. न्यूयॉर्क में सीधे मेयर चुने जाते हैं जबकि मुंबई में पहले पार्षद का चुनाव होता है, जो इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं जो मेयर को चुनता है. लिहाजा यह चुनाव भाषाई और क्षेत्रीय गौरव के आधार पर ही नहीं लड़ा जा रहा है, बल्कि न्यूयॉर्क की तरह, भारत के सबसे कॉस्मोपॉलिटन शहर माया नगरी मुंबई में धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर भी लड़ा जा रहा है. मायानगरी की सबसे बड़ी जंग केवल महानगरपालिका का नहीं बल्कि देश की आर्थिक राजधानी की चाबी का चुनाव है. बीएमसी चुनाव 2026 तय करेगा कि मुंबई किस दिशा में जाएगी.

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