महारष्ट्र में राजनितीक टकराव हिंसा का रुप लेते जा रहा है. एक तरफ नेताओं पर हमले बढ़े हैं तो नेता भी नफरत और आरपार की भाषा बोलने लगे हैं. विपक्ष राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है तो बीजेपी का आरोप है कि विपक्ष राज्य की एकता अखंडता औऱ शांति भंग करने की कोशिश में जुटा है. लेकिन इस आरोप प्रत्यऱोप के बीच एक अहम सवाल ये भी है कि आखिर कहां जा रही है महराष्ट्र की राजीनीति?
पहले अकोला में एनसीपी विद्यायक अमोल मिटकरी की कार पर एम एन एस कार्यकर्ताओं का हमला, फिर मुम्बई में एनसीपी शरद पवार गुट के नेता जितेंद्र आव्हाड की कार पर स्वराज संगठन के कार्यकर्ताओं का हमला. गनीमत रही कि दोनों नेता हमले में बाल - बाल बच गए.
अनिल दशमुख ने बताया है कि देवेंद्र फडणवीस ने कैसे मुझे और आदित्य की जेल में डालने की चाल चली थी. आज में एलान करता हूँ कि महाराष्ट्र में अब या तो तुम (देवेंद्र फडणवीस) रहोगे या मैं रहूंगा?
देवेंद्र जी गृहमंत्री हैं उनको धमकी देने का काम ये उद्धव ठाकरे करते हैं और भाषा भी करते हैं कि मैं तुमको निपट लूंगा. या तो तू रहेगा या मैं रहूंगा. ये राजनैतिक भाषा नही है. ये भाषा और ये अंदाज , ये धमकी जो विशिष्ट वर्ग के गुनहगार काम कर रहे हैं उनको बताने के लिए है कि तुम चिंता मत करो मैं बताऊंगा. मुम्बई को असुरक्षित करने का ये षड्यंत्र है.
2019 के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में काफी गलत शब्दों का इस्तेमाल होने लगा औऱ आक्रामक रवैया अपनाओ ऐसा पार्टी नेताओं से दिया जाने लगा। इसलिए आज भाषा का प्रयोग बदल गया है नेता भी आज अलग भाषा का प्रयोग कर रहे हैं. क्योंकि राजनिति का स्वरूप बदल गया है और निजि तौर पर आ चुका है.
महाराष्ट्र की राजनीति में बढ रही हिंसा एक चिंताजनक मुद्दा है. जिसकी प्रमुख वजह धार्मिक और सामाजिक एकता में कमी और विभाजन की भावना बढ़ना है. नेता भी इन मुद्दों को हल करने की बजाय अपने अपने फायदे के लिए आग में घी डालने का काम करते ज्यादा दिख रहे हैं.