MP : चीतों के शोर के पीछे दबा 'काला सच', आस-पास के गांवों में घनघोर कुपोषण और मुफलिसी

एनडीटीवी की टीम शिवपुरी और श्योपुर के बीच स्थित ऐसे ही एक गांव ककरा पहुंची. वहां, जो तस्वीरें एनडीटीवी की टीम को देखने को मिली, वो कभी भी मीडिया में सामने नहीं आईं

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नेशनल पार्क के नजदीक जिस गांव में एनडीटीवी की टीम पहुंची थी, उसमें भी दो से तीन बच्चे कुपोषित हैं.

भोपाल:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा है. इससे पहले आठ चीतों को नामीबिया से एयर फोर्स के विशेष विमान से भारत लाया गया. सरकार एक ओर जहां दावा कर रही है कि यह कदम इस इलाके के लिए वरदान साबित होगा, वहीं दूसरी तरफ उस इलाके की हकिकत कुछ और ही बयां कर रही है.

सरकार का कहना है कि चीतों के यहां आने से क्षेत्र में पर्यटन बढ़ेगा लेकिन चीतों के शोर के पीछे एक 'काला सच' दबता हुआ दिख रहा है. जिस जंगल और अभ्यारण्य में नामीबिया से लाए गए ये चीते रहेंगे, उसके आस-पास के गांवों में घनघोर कुपोषण और गरीबी है. लोगों को पास रोजगार की कमी है. श्योपुर जिले को भारत का इथोपिया भी कहा जाता है.

एनडीटीवी की टीम शिवपुरी और श्योपुर के बीच स्थित ऐसे ही एक गांव ककरा पहुंची. वहां, जो तस्वीरें एनडीटीवी की टीम को देखने को मिली, वो कभी भी मीडिया में सामने नहीं आईं. मीडिया में बताया जा रहा है कि चीतों के आने से इलाके में कैसे बहुत बड़े बदलाव होंगे. यह बात सच भी है कि बदलाव हो सकते हैं लेकिन जैसा वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि इन बदलावों को होने में करीब 20-25 साल लग जाएंगे. ये बदलाव तब आ सकते हैं जब इन जंगलों में चीतों की बड़ी आबादी हो जाएगी और पर्यटक उन्हें देखने आएंगे.

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श्योपुर जिले में 21 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. यह आंकड़ा मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा में लिखित जवाब में दिया था. दो हफ्ते पहले इसी जिले में एक बच्ची की कुपोषण से मौत हो गई थी. अधिकारियों ने ये जरूर किया कि कुपोषण के आंकड़ों में जैसे ही पाँच साल से ऊपर के बच्चे हुए उनको उस लिस्ट से ही हटा दिया और ऐसे यहां कागजों पर कुपोषण खत्म हो गया.

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नेशनल पार्क के नजदीक जिस गांव में एनडीटीवी की टीम पहुंची थी, उसमें भी दो से तीन बच्चे कुपोषित हैं. 

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बातचीत में गांव के लोगों ने बताया कि यहां कोई रोजगार नहीं है बल्कि घनघोर गरीबी है. बच्चे कुपोषित हैं. जब उनसे पूछा गया कि यहां चीते छोड़े जा रहे हैं तो इससे आपका कुछ फायदा होगा, तो गांववालों ने कहा कि चीतों से हमें कुछ नहीं मिलने वाला. इनके आने से हमारी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

बता दें, जिस क्षेत्र में कूनो नेशनल पार्क स्थित है, वहां करीब 23 गांव ऐसे हैं जो गरीबी और कुपोषण से जूझ रहे हैं. इनकी आबादी तकरीबन 56,000 है. 

ऐसा नहीं कि इस इलाके में किसी खास सियासी पार्टी का ही दबदबा रहा हो, बल्कि यहां से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नुमाइंदे दशकों से जीतते रहे हैं, लेकिन उनका ध्यान इस क्षेत्र के लोगों की बुनियादी जरूरतों की ओर नहीं गया.

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