MP : अस्पतालों की जांच के नाम पर 'खिलवाड़', समझें - कैसे आम आदमी की जान जोखिम में डाल रहा विभाग

नगर निगम अधिनियम 1956 कहता है कि भवन पूर्णता प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही किसी भी भवन को उपयोग में लाया जा सकता है, यानी मौत के बाद नियम कड़े नहीं बल्कि शिथिल हो गए.

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भोपाल में 503 अस्पताल हैं, जिनमें से 212 कोरोना काल में खुले. (फाइल फोटो)
भोपाल:

मध्य प्रदेश में जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल में 1 अगस्त को आग लगी थी, जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी. अस्पताल को मंजूरी देने वाले 3 डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया, उसके बाद शहर के सारे अस्पतालों की जांच शुरू हुई. उस जांच दल में पहले से निलंबित इन तीनों डॉक्टरों को शामिल कर लिया गया. मामले की सुनवाई हाकोर्ट में भी चल रही है. कोर्ट ने नाराज होकर कहा है कि ऐसे में वो मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी को सौंप देगा.

जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 1 अगस्त को भीषण आग लग थी, जिसमें 8 लोग जिंदा जल कर मर गए थे और 18 घायल हुए थे. इसके बाद अस्पतालों में फायर सेफ्टी को लेकर सवाल उठे. अगले दिन अस्पताल को एनओसी देने वाले 3 डॉक्टर डॉ. एल एन पटेल, डॉ. दिनेश चौधरी और डॉ. कमलेश वर्मा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया. 

तीनों डॉक्टर के निलंबन के बाद उसी दिन तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. रत्नेश कुरारिया ने एक घंटे बाद इन निलंबित डॉक्टरों का नाम उस लिस्ट भी में शामिल कर दिया, जिन्हें शहर के सभी अस्पतालों की जांच करनी थी. यानि जिस लापरवाही के लिए इन तीनों डॉक्टरों को निलंबित किया गया था, उन्हें ही दूसरे अस्पतालों की जांच की जिम्मेदारी दे दी गई. 

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18 अगस्त को हाईकोर्ट में जब पता चला तो कोर्ट भी हैरान रह गया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह बहुत चौंकाने वाला है. जब इनके निलंबन का प्रस्ताव किया जा चुका था, तब उसी दिन इन्हें इंक्वायरी कमेटी का मेंबर भी बना दिया गया. इसके बाद कोर्ट ने इस मामले में डिप्टी एडवोकेट जनरल से हलफनामा मांगा है.

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इस मामले में स्वास्थ्य विभाग से जब एनडीटीवी ने सवाल किया तो उसका जवाब और हैरानी भरा था. स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक डॉ. संजय मिश्रा ने कहा कि 3 तारीख से 45 डॉक्टरों की टीम बनाई गई, इन्हें दूसरे अस्पताल दिए गए. उसी अस्पताल की जांच दोबारा नहीं कराई गई, जिन अस्पतालों की इन तीनों ने पहले जांच की थी.

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मध्य प्रदेश में चिकित्सा विभाग के एसीएस मोहम्मद सुलेमान ने पिछले साल ही राज्य के सभी अस्पतालों के 13 बिंदुओं को लेकर जांच के आदेश दिए थे. हैरत यह है कि जांच दल को एक भी अस्पताल ऐसा नहीं मिला जहां नियमों को ताक पर रखा गया हो. हालांकि, आरटीआई के तहत जानकारी मांगते ही 3 अस्पतालों में खामियां निकल आईं.

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इस मामले में याचिकाकर्ता विशाल बघेल ने कहा, " इस कमेटी ने एक भी अस्पताल को नियम विरूद्ध नहीं माना. हमनें 3 अस्पतालों के कागज मांगे तो आरटीआई लगते ही उनके लाइसेंस निरस्त कर दिए, जिससे पता लगता है कि 2021 को जो जांच हुई वो फर्जी थी और उसमें अस्पतालों को फायदा पहुंचाया गया था. ये तब हुआ जब राज्य में 1 साल में छह बड़े अस्पतालों में आग लग चुकी है." 

अगस्त 2022 में जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल में 8 लोगों की मौत हुई. जनवरी 2022 इंदौर के मेदांता अस्पताल में आईसीयू में आग लगी. मई 2021 को अशोकनगर जिला अस्पताल मे भीषण आग लगी. जून 2021 खरगोन जिला अस्पताल के आईसीयू में आग लगी, इन तीनों में मरीज़ों को बचा लिया गया था. लेकिन नवंबर 2021 में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में 12 बच्चों की जलकर मौत हो गई थी. हालात ऐसे हैं कि फायर एनओसी के लिए आवेदन की पर्ची पर कोरोना काल में 200 से ज्यादा नए अस्पतालों को मंजूरी दे दी गई.

अब हम आपको बताते हैं, खेल होता कैसे है. पिछले साल तो सरकार को गड़बड़ी नहीं मिली. इस साल जांच का जो आदेश आया, उसमें 12 प्वाइंट तो कट कॉपी पेस्ट हैं, लेकिन एक बिंदू जिसमें पहले अस्पताल खोलने के लिए बिल्डिंग कंप्लीशन सर्टिफिकेट की जरूरत थी, उसे 3 अगस्त 2022 को बिल्डिंग परमिशन में बदल दिया गया यानी मात्र नक्शा पास कराने से ही आप नर्सिंग होम चला सकते हैं. जबकि बिल्डिंग कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेने के लिए भवन पूर्ण होने के अलावा,सुरक्षा मानक, जिसकी जांच निगम की भवन शाखा ने की हो.

ऐसा इसलिए क्योंकि नगर निगम अधिनियम 1956 कहता है कि भवन पूर्णता प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही किसी भी भवन को उपयोग में लाया जा सकता है, यानी मौत के बाद नियम कड़े नहीं बल्कि शिथिल हो गए. 2021 में हमने चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्यमंत्री के इलाकों से तस्वीर दिखाई थी. कैसे मल्टीकेयर, मल्टीस्पेशयलिटी अस्पतालों के बोर्ड लगे हैं. जेनरल सर्जरी, इंटरनल मेडिसिन, गायनोकोलॉजी जैसी कई सेवाओं का दावा है, लेकिन एक बिस्तर, कोई मशीन नहीं, एक डॉक्टरों के नाम अलग-अलग जिलों के अस्पतालों में 10-12 जगह बतौर रेजिडेंट डॉक्टर दर्ज हैं.

भोपाल में 503 अस्पताल हैं, जिनमें से 212 कोरोना काल में खुले. इंदौर में 274 अस्पताल हैं, जिनमें से 48 कोरोना काल में खुले. जबलपुर में 138 में से 34 कोरोना काल में खुले. ग्वालियर में 360 में 116 कोरोना काल में खुले. ये भी जादू था कि सरकार को 5000 डॉक्टर, 16000 नर्सिंग स्टाफ चाहिये, वैकेंसी भी निकली लेकिन कोई डॉक्टर नहीं आया, जो आये वो भी चले गए. लेकिन इन अस्पतालों ने बतौर प्रशासन सारी शर्तें पूरी कर दीं. डब्लूएचओ के मुताबिक 1000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. देश में 11082 लोगों पर औसतन एक सरकारी डॉक्टर है, मप्र में 16,996 लोगों पर एक डॉक्टर.

खैर प्रशासन बहादुर ने जलबपुर के लिए नई टीम बना दी है, जिसमें डॉक्टरों के अलावा फायर सेफ्टी ऑफिसर और एक बिजली विभाग का अधिकारी होगा. ऐसे में उम्मीद है कि अस्पतालों की अनियमितता सामने आएगी और आम लोगों की जान पर मंडरा रही आफत खत्म होगी. 

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