दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढने वाले किन्नरों पर कोरोना ने कहर ढाया, रोजी-रोटी का संकट

बीमार हुए तो इलाज और वैक्सीन लगाने के लिए भी किन्नरों को किसी सूची में नहीं रखा गया, न ही कहीं प्राथमिकता मिली

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प्रतीकात्मक फोटो.
भोपाल:

महीनों लॉकडाउन और कोरोना महामारी में शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में नाच-गाकर अपना घर चलाने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने अब रोजी-रोटी का संकट आ गया है. खाने की तकलीफ है, बीमार हुए तो इलाज की वैक्सीन लगाने के लिए भी इन्हें किसी सूची में नहीं रखा गया, ना प्राथमिकता मिली. दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढने वाले किन्नरों पर कोरोना ने कहर ढाया है, हर खुशी के मौके पर बजने वालीं तालियां खामोश हैं तो पेट भूखा रहने को मजबूर. 

भोपाल के मंगलवारा में अपने गुरू के साथ रहने वाले ये किन्नर भूखे हैं लेकिन जुबान पर दुआ है. मंगलवारा में रहने वाली अलीशा कहती हैं, लॉकडाउन में निकलना हुआ नहीं, कहीं गए भी तो पता लगा कि घर की स्थिति ठीक नहीं थी तो दुआ देकर आ गए. 
    
शबाना का कहना था कि शादी हो नहीं रही, काम धंधा बंद है. गरीबी चल रही है ... लोगों को देखकर समझ जाते हैं कि उनके पास खुद नहीं है तो हमें क्या देंगे. घर में सिर्फ  चावल है, फिर भी गुरू ने बहुत ख्याल रखा. वहीं कल्पना ने दुआ करते हुए कहा कोरोना चला जाए, मेरे जितने जिजमान हैं सबका मालिक भला करे.
    
भोपाल में किन्नरों के बाड़े मंगलवारा, बुधवारा और इतवारा में हैं. कहते हैं कि भोपाल में राजा भोज के शासन में जब सूखा और अकाल पड़ा तो अकाल से मुक्ति के लिए राजा भोज ने किन्नरों को भुजरिया करने का आग्रह किया जिसमें गेहूं के दानों को छोटे-छोटे पात्रों के अंदर मिट्टी में अंकुरित होने के लिए रख दिया जाता है जो शांति और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं. इनकी तालियों से मंगल होता है.

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पिछले साल केन्द्र सरकार ने कहा था जो ट्रांस जेंडर सहायता मांगेंगे उन्हें 1500 रुपये का निर्वाह भत्ता दिया जाएगा लेकिन मंगलवारा में किसी को कुछ नहीं मिला. इनकी गुरू सुरैय्या नायक ने कहा  ना तो किसी ने 1500 रुपये दिया, ना अनाज दिया. सबके ऊपर सरकार ने ध्यान दिया, कभी किन्नरों पर नहीं दिया. मालिक करे दुनिया से कोरोना चला जाए, किन्नर समाज बहुत परेशान है.

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किन्नरों के पास वैसे भी आधार कार्ड या दूसरे दस्तावेज नहीं हैं ऐसे में उन्हें वैक्सीन लगवाने में भी दिक्कत हो रही है. भोपाल जिले में 167 थर्डजेंडर हैं जिनके नाम वोटिंग लिस्ट में हैं, ये इतने बड़े वोट बैंक भी नहीं जो हुक्मरानों को इनकी परवाह हो. वैसे भी हजारों सालों से किन्नर समाज के सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी का शिकार है, और शायद परवाह भी किसी को नहीं.

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