भोपाल: वैक्सीन ट्रायल, मौत के दो माह बाद भी दीपक मरावी की विसरा रिपोर्ट क्यों नहीं आई?

परिजनों का यह भी आरोप है कि ट्रायल के सहमति पत्र में जो हस्ताक्षर उन्हें दिखाए गए हैं वो दीपक मरावी के नहीं हैं

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कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और दीपक मरावी के परिजन (फाइल फोटो).
भोपाल:

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) में वैक्सीन ट्रायल (Vaccine Trial) के प्रतिभागी दीपक मरावी (Deepak Marawi) की मौत के मामले की खबर जब NDTV ने दिखाई तो खूब हंगामा मचा,अगले दिन सरकार ने एक कमेटी बनाई जिसने क्लीनिकल ट्रायल दफ्तर में दोपहर 12 बजे से शाम 3 बजे तक ट्रायल प्रोटोकॉल से जुड़े दस्तावेजों की जांच की. परिजनों से बात किए बगैर शाम तक रिपोर्ट दे दी. लेकिन मौत के दो महीने बाद भी विसरा रिपोर्ट नहीं आई. परिजनों का ये तक आरोप है कि सहमति पत्र में जो हस्ताक्षर उन्हें दिखाए गए हैं वो दीपक के नहीं हैं.
     
वैक्सीन ट्रायल के प्रतिभागी दीपक मरावी की मौत के दो महीने बीतने के बाद भी, कई सवाल बरकरार हैं. एनडीटीवी ने इस मामले में 2 जनवरी को ही भेजी गई अंतिम गंभीर प्रतिकूल घटना यानी (एसएई) रिपोर्ट की एक्सक्लूसिव कॉपी हासिल की है. जिससे साफ होता है कि तब तक दीपक के मामले में अनब्लाइंडिंग नहीं की गई.

दस्तावेजों में DSMB के साथ कंपनी का पत्राचार भी शामिल है, जिसके मुताबिक दीपक की मौत की प्रारंभिक रिपोर्ट 22 दिसंबर को दी गई. उसी दिन एक बैठक भी हुई. फिर 1 जनवरी को DSMB सदस्यों के साथ पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट साझा की गई जिसमें एक सदस्य ने इसे संभवतः आत्महत्या बताया था. हमें नहीं पता कि मृत्यु के कारण के बारे में अंतिम निर्धारण DSMB या DCGI ने क्या किया था या इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा?
      
कुछ दिनों पहले पीपुल्स अस्पताल, जहां दीपक मरावी को पहली डोज मिली थी, के डीन डॉ एके दीक्षित ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कंपनी के नियमों के मुताबिक फिलहाल हम मामले को डीकोड नहीं कर सकते, ये ट्रायल खत्म होने के बाद ही होगा. 
    
यह मामला सामने आने के बाद, वैक्सीन निर्माता ने भी अपने बयान में कहा था. कंपनी के मुताबिक प्रारंभिक जांच से यह पता चलता है कि मौत का ट्रायल में दी गई वैक्सीन से कुछ लेना देना नहीं है. वैक्सीन का ट्रायल गुप्त तरीके से किया जाता है, इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि वालंटियर को असली वैक्सीन दी गई थी या प्लेसिबो. प्लेसिबो कोई दवा नहीं होती और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता. 
      
लेकिन सवाल ये है कि जब ये पता ही नहीं कि प्रतिभागी को वैक्सीन दिया गया या प्लेसीबो तो उससे पहले क्लीनचिट की हड़बड़ी क्यों? परिवार का आरोप है कि सहमति पत्र पर दीपक के हस्ताक्षर नहीं हैं, न ही सहमति की कोई ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग थी. दीपक की पत्नी वैजयंती मरावी ने कहा कि ''जो कागज मिला है हमें, वो इंग्लिश में साइन है, वो तो हिन्दी में साइन करते थे. इतने दिन हो गए हैं मुझे रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं. पॉयजन बना है, वो बताया लेकिन कहां से बना, कैसे बना, ये कोई नहीं बता रहा है.'' 
      
रिपोर्ट में हर जगह ये कहा गया है कि बेटे ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अस्पताल को खुद फोन करके जानकारी दी. लेकिन परिजन इसे भी गलत बता रहे हैं. दीपक के बेटे सूरज मरावी ने बताया कि ''जब हमें पता लगा वो शांत हो गए तभी फोन आया. मैंने बताया वो हमीदिया में हैं. अगला कॉल 8 जनवरी को आया दूसरी बार वैक्सीन लगाने के लिए.''
     
सबसे बड़ा सवाल ये है कि सबसे अहम विसरा रिपोर्ट कब आएगी. सूरज सवाल पूछते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद विसरा रिपोर्ट आई ही नहीं. कोई बोलता है 8 महीने में आएगी. कोई साफ बता ही नहीं रहा है. 
    
कांग्रेस मामले में जांच की मांग कर रही है. सरकार का कहना है सब तय समय सीमा में होगा. चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा बहुत सारे जानकार कहते हैं कि मौत वैक्सीन से नहीं हुई. जब हमने पूछा जानकार ये भी कहते हैं कि विसरा रिपोर्ट से पता लगेगा, वो कब आएगी? तो उन्होंने कहा उसकी समय सीमा है. समय सीमा में आएगी, ये सुनिश्चित है किसी भी मृत्यु को लेकर यथार्थ आएगा किसी की छिपाने की मंशा नहीं है.

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वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री पीसी शर्मा ने कहा सरकार मामले को दबा रही है. उसकी कोई देखरेख नहीं की गई. कुल मिलाकर पूरे मामले को दबाया जा रहा है उसकी जांच होनी चाहिए.  वैसे परिवार बार-बार दुहरा रहा है कि दीपक जहर ले ही नहीं सकते थे, डोज़ लेने के दूसरे ही दिन से वो बीमार थे. हमने भी बार बार यही कहा कि हमें नहीं पता मौत कैसे हुई लेकिन ये तथ्य है कि वो वैक्सीन ट्रायल में प्रतिभागी थे. ऐसे में और भी जरूरी हो जाता है कि विसरा रिपोर्ट के जरिए सच्चाई सामने आए.

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VIDEO: मौत की जांच में जल्दबाजी क्यों?

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