BMC चुनाव: मुंबई में आखिरी बार कब बना था हिंदीभाषी मेयर? कितने गैर-मराठी बन चुके हैं शहर के मेयर?

कांग्रेस के दिवंगत नेता आर.आर.सिंह मुंबई के आखिरी हिंदी भाषी मेयर थे. मेयर की कुर्सी पर दो साल तक रहने वाले सिंह करीब 1973 से करीब तीन दशकों तक लगातार मुंबई के मुलुंद इलाके से पार्षद रहे.

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मुंबई महानगरपालिका के लिए इस बार की लड़ाई भी खास है
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  • मुंबई महानगरपालिका के पिछले तीस वर्षों में केवल मराठीभाषी ही मेयर बने हैं, गैर-मराठी मेयर नहीं रहे
  • सिंह की मेयर नियुक्ति में यूपी-बिहार के वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस की रणनीति भी शामिल थी
  • स्वतंत्रता के बाद मुंबई में गुजराती, दक्षिण भारतीय, अंग्रेजी भाषी समेत कुल बारह गैर-मराठी मेयर बने हैं
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मुंबई:

मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में एक बडा मुद्दा मराठी बनाम गैर-मराठी का भी है. शिव सेना (उद्धव) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) जैसी पार्टियां इस डर के बिनाह पर मराठी मतदाताओं से वोट मांग रहीं हैं कि अगर वे सत्ता में नहीं आयीं तो कोई गैर-मराठी मुंबई का मेयर बन सकता है. बीते 30 सालों से मुंबई में कोई मराठीभाषी ही मेयर बना है लेकिन उससे पहले दूसरी भाषा बोलने वाले लोग भी मुंबई के मेयर रह चुके हैं. मुंबई में आखिरी हिंदीभाषी या फिर गैर मराठी मेयर 1993-94 में बना.

कांग्रेस के दिवंगत नेता आर.आर.सिंह मुंबई के आखिरी हिंदी भाषी मेयर थे. मेयर की कुर्सी पर दो साल तक रहने वाले सिंह करीब 1973 से करीब तीन दशकों तक लगातार मुंबई के मुलुंद इलाके से पार्षद रहे. 1938 में जन्में सिंह बचपन में ही उत्तर प्रदेश से मुंबई आ गये थे और यहां वे एक तबेले में काम करते थे. पंडित जवाहरलाल नेहरू से प्रभावित होकर उन्होने राजनीति में कदम रखा. हिंदीभाषी सिंह मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी और उर्दू भाषाओं में भी महारत रखते थे. 

1993 में जब मुंबई महानगरपालिका में कांग्रेस को अपने मेयर बनाने का मौका मिला तो सिंह को उनकी वरिष्ठता और उत्तरभारतियों के बीच पैठ की वजह से मेयर बनाया गया. 1995 में होने जा रहे विधान सभा चुनावों में यूपी-बिहार के वोटरों को लुभाने के लिये ये कांग्रेस की रणनीति का एक हिस्सा भी था.सिंह मुंबई के न केवल आखिरी गैर-मराठी मेयर थे बल्कि कांग्रेस के भी शहर में आखिरी मेयर थे. उसके बाद से लगातार शिव सेना ही बीएमसी चुनाव जीतते आयी है और उसकी ओर से सिर्फ मराठीभाषी पार्षद को ही मेयर बनाया गया. चूंकि शिव सेना का बीजेपी के साथ गठबंधन था ऐसे में इक्का-दुक्का बार बीजेपी की ओर से गैर-मराठी पार्षद को उप-महापौर बनने का मौका जरूर मिला.

अगर आजादी के बाद से मुंबई के मेयरों की फेहरिश्त पर गौर करें तो पायेंगे कि सिंह के पहले भी कई गैर-मराठी मुंबई के महापौर बन चुकें हैं, हालाकिं हिंदीभाषी मेयर उनसे पहले सिर्फ एक बार ही बना. मूल रूप से राजस्थान के मुरली देवडा 1977-78 में कांग्रेस से मेयर बने थे. एक नजर डालते हैं कि स्वतंत्रता के बाद मुंबई में कितने गैर-मराठी महापौर बने गुजराती (12), दक्षिण भारतीय (04),अंग्रेजी भाषी (कैथॉलिक के 04), हिंदीभाषी (02), पंजाबी (01). 

मुंबई में विविध भाषिकों का मेयर पद पर आसीन होना इस शहर के कॉस्मोपॉलिटन चरित्र को प्रकट करता है. ये अलग बात है कि 60 के दशक में शिव सेना के उदय के बाद से लगातार गैर-मराठी मेयरों की संख्या घटने लगी.भले ही अब गैर-मराठियों के लिये मुंबई में मेयर पद हासिल कर पाना दूर का सपना लगे लेकिन किस पार्टी का मेयर बनेगा इसे तय करने में गैर-मराठी वोटर अपने संख्याबल के आधार पर अहम भूमिका निभाते हैं.

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