- मराठा समुदाय के स्वतंत्र आरक्षण का समर्थन करते हुए मंत्री छगन भुजबल ने ओबीसी से आरक्षण दिए जाने का विरोध किया
- ओबीसी आरक्षण के खिलाफ राज्यभर में तालुका और जिला स्तर पर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल करने का फैसला लिया गया
- सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समाज को सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग नहीं माना और ओबीसी आरक्षण देने से मना किया है
मराठा आरक्षण के आंदोलन के चलते ओबीसी समुदाय ने मंत्री छगन भुजबल के नेतृत्व में मुंबई में एक अहम बैठक बुलाई थी. इस बैठक में मंत्री छगन भुजबल ने कहा कि हम मराठा समुदाय के स्वतंत्र आरक्षण का समर्थन करते हैं, लेकिन ओबीसी से आरक्षण दिए जाने का विरोध करते हैं.
छगन भुजबल ने कहा अन्याय हुआ तो हम मुंबई जाएंगे
मंत्री छगन भुजबल ने बताया कि अगर अन्याय हुआ तो हम मुंबई भी जाएंगे और कल से ओबीसी राज्य भर के तालुका और ज़िला स्तर पर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन करेंगे. राज्य में आरक्षण का मुद्दा गंभीर हो गया है. मुंबई में मराठा समुदाय ओबीसी से आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहा हैं.उन्होंने कहा, अगर ओबीसी से मराठा समुदाय को आरक्षण दिया जाता है, तो इससे ओबीसी की छोटी जातियों को बहुत नुकसान होगा, इसलिए हम स्वतंत्र आरक्षण का समर्थन करते हैं और ओबीसी से आरक्षण दिए जाने का हमेशा विरोध करेंगे.
हम सभी विचार-विमर्श के लिए एकत्र हुए
इस दौरान छगन भुजबल ने कहा कि आज हम सभी यहां विचार-विमर्श के लिए एकत्र हुए हैं. बैठक अचानक बुलाए जाने के कारण कई नेता नहीं आ सके. कल से हम जस्टिस मार्ला पार्ले द्वारा दिए गए हाईकोर्ट के फैसले को देख रहे हैं कि मराठा और कुनबी एक नहीं हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहां कोर्ट ने भी कहा कि मराठा समाज सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं है, इसलिए चाहे मराठा-कुनबी हो या कुनबी-मराठा, ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
कुछ साल पहले भी मराठा समाज ने आरक्षण के लिए किया था विरोध प्रदर्शन
कुछ साल पहले आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे. महाराष्ट्र में मराठा समाज, पाटीदार, जाट, गुर्जर समेत सभी समुदायों ने विरोध प्रदर्शन किया था. इस समय केंद्र सरकार EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) का विकल्प लेकर आई और इस आरक्षण को लागू किया. इस आरक्षण को लेकर जब मामला सुप्रीम कोर्ट गया, तो केंद्र सरकार ने कहा कि इसके अंतर्गत आने वाले समुदाय सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं हैं, बल्कि आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, इसलिए उन्हें EWS आरक्षण दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट में उस आरक्षण को बरकरार रखा गया और उसके बाद देश भर के अन्य सभी समुदायों के आंदोलन थम गए.
EWS आरक्षण के बाद भी कुछ नेता नहीं मान रहे - भुजबल
मंत्री छगन ने कहा कि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए ईडब्ल्यूएस (EWS) आरक्षण होने के बावजूद कुछ नेता बात नहीं मान रहे हैं और महाराष्ट्र में आंदोलन चल रहे हैं. इसलिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एसईबीसी (सामाजिक आर्थिक पिछड़ा वर्ग) का विकल्प निकालकर अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण दिया, लेकिन फिर भी उन्हें ओबीसी में शामिल करने के लिए आंदोलन किए जा रहे हैं. कई राजपत्रों में इसका उल्लेख है, लेकिन अगर आप इन सभी राजपत्रों की जांच करें, तो इन सभी राजपत्रों में कुनबी और मराठों के अलग-अलग आंकड़े लिखे हैं.
1921 के राजपत्र में उल्लेख है कि मराठा - 14 लाख 7 हजार कुनबी हैं. इसके बाद के 1931 के राजपत्र में भी मराठा और कुनबी के रूप में एक अलग प्रविष्टि है. मैंने आज व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को ये सारे सबूत दिखाए.
छगन ने कही यह बात
इस समय आयोजित बैठक के दौरान छगन भुजबल ने मार्गदर्शन करते हुए कहा, हमें अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. हमें तहसीलदार और ज़िला कलेक्टर कार्यालयों पर धरना देना चाहिए और ओबीसी कोटे में हिस्ता मांगने वालों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करना चाहिए. चाहे कुछ भी हो जाए, हमारा रुख़ यही होना चाहिए कि हम हिस्ता मांगने वालों को ओबीसी समुदाय के आरक्षण में शामिल नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि अगर इस विरोध प्रदर्शन के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, तो हम उसे भी आगे बढ़ाएंगे जो लोग सक्षम हैं, उन्हें क्रमिक भूख हड़ताल करनी चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हमारे साथ अन्याय हुआ, तो हम मुंबई भी जाएंगे.
ओबीसी आरक्षण देने का अधिकार मुख्यमंत्री को नहीं
ओबीसी आरक्षण देने का अधिकार राज्य के मुख्यमंत्री को नहीं, बल्कि पिछड़ा वर्ग आयोग को है. ओबीसी श्रेणी में जातियों को जोड़ने या हटाने का अधिकार मुख्यमंत्री को नहीं है. शरद पवार या देवेंद्र फडणवीस को भी यह अधिकार नहीं है, यह पिछड़ा वर्ग आयोग का काम है इसलिए, उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें दोष देने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि हमारा रुख यह है कि अगर कुनबी हैं, तो उन्हें कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाना चाहिए. जो कुनबी हैं, उन्हें लाभ मिलना चाहिए, लेकिन हम सभी को सामान्य रूप से कुनबी मानने के ख़िलाफ़ हैं. लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करना किसी के लिए भी बाध्यता नहीं है, लेकिन कल मैंने सुना कि विरोध प्रदर्शन के दौरान एक पत्रकार को भी परेशान किया गया और सांसद सुप्रिया सुले को भी घेर लिया गया. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह हमारी संस्कृति नहीं है, हम इस मामले की निंदा करते हैं.