Maharashtra :मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर (Javed Akhtar) द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तुलना तालिबान के साथ करने संबंधी बयान से महाराष्ट्र (Maharashtra)में सत्तारूढ़ शिवसेना (Shiv Sena) ने पूरी तरह से असहमति जताई है. इस मामले में खुलकर RSS के पक्ष में उतरते हुए शिवसेना ने कहा, 'इन दोनों की तुलना करते हुए जावेद अख्तर पूरी तरह गलत थे.' शिवसेना के मुखपत्र ''सामना'' के संपादकीय में कहा गया है, ‘आप कैसे कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का समर्थन करने वाले तालिबानी मानसिकता के हैं? हम इससे सहमत नहीं हैं.' RSS के पक्ष में राय जताते हुए पार्टी ने कहा, उदाहरण के तौर पर संघ ने बीफ मुद्दे पर धार्मिक उन्माद का समर्थन नहीं किया था और कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर कोई उन्माद यहां स्वीकार नहीं किया जाता...न तो शिवसेना और न ही आरएसएस इसका समथन करते हैं. पार्टी ने कहा, 'हम हिंदुत्व के नाम पर पागलपन को स्वीकार नही करेंगे. फिर आप कैसे कह सकते हैं कि जो हिंदू राष्ट्र की विचारधारा के पक्षधर हैं वे तालिबानी मानसिकता के हैं. हम इससे सहमत नहीं हैं. '
शिवसेना के संपादकीय में कहा गया है, 'पाकिस्तान और चीन जैसे देशों ने तालिबान के शासन का समर्थन किया है जहां मानवाधिकार, लोकतंत्र और निजी आजादी जैसे मूल्य नहीं है. हिंदुस्तान की मानसिकता ऐसी नहीं है. हम हर तरह से काफी सहिष्णु हैं. 'गौरतलब है कि NDTV के साथ बातचीत में जावेद अख्तर ने कहा था कि इस बात में कोई शक नहीं कि तालिबानी बर्बर है लेकिन आरएसएस (RSS), विश्व हिंदू परिषद (VHP)और बजरंग दल (Bajrang Dal) का समर्थन करने वाले भी ऐसे ही हैं. राज्यसभा सांसद रह चुके जावेद साहब ने कहा था कि देश में मुस्लिमों का एक छोटा सा हिस्सा ही तालिबान का समर्थन कर रहा है. उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथियों की विचारधारा दमनकारी है.
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जावेद अख्तर ने कहा था कि तालिबान और 'तालिबान की तरह बनने की चाहत रखने वालों' के बीच अजीबोगरीब समानता है. दिलचस्प बात यह है कि दक्षिणपंथी इसका इस्तेमाल खुद को प्रमोट करने के लिए इस उद्देश्य से करते हैं कि उसी तरह बन सके, जिसका वे विरोध कर रहे हैं. देश के मुस्लिमों की ओर से तालिबान का समर्थन किए जाने संबंधी सवाल कर उन्होंने कहा, 'मुझे उनका बयान शब्दश: याद नहीं है लेकिन कुछ मिलाकर उनकी भावना यह थी कि वे अफगानिस्तान में तालिबान का स्वागत करते हैं. मैं कहना चाहूंगा कि यह हमारे देश की मुस्लिम आबादी को छोटा सा हिस्सा हैं. ' उन्होंने कहा, 'जिन मुस्लिमों से मैंने बात की, उनसे से अधिकतर हैरान थे कि कुछ लोगों ने ऐसे बयान दिए. भारत में युवा मुसलमान अच्छा रोजगार, अच्छी शिक्षा और अपने बच्चों के लिए अच्छा स्कूल चाहते हैं. लेकिन दूसरी तरह कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस तरह की संकीर्ण सोच में विश्वास रखते हैं- जहां महिला और पुरुषों से अलग-अलग व्यवहार होता है और पीछे की ओर ले जानी वाली सोच (regressive thinking) रखी जाती है.. '