कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की दूसरी लहर के बाद से ही व्यापारियों की परेशानी बढ़ गई है. व्यापार न के बराबर हैं और कम काम होने के वजह से इसका असर मजदूरों पर भी पड़ा है. महाराष्ट्र (Maharashtra) के महानगर मुंबई के धारावी इलाके में ट्रैक पेंट बनाने का काम करने वाले अहमद रज़ा के यहां पहले 15 मजदूर काम करते थे,लेकिन अब केवल 6 लोग ही काम कर रहे हैं. दुकान में भी सामान भरा हुआ है क्योंकि कोई खरीदार नहीं है. लगभग यही हाल कपड़े के व्यवसाय से जुड़े सराजुद्दीन अंसारी का भी है. पहले 15 से 20 मशीनों पर काम होता था, अब मांग ना होने के वजह से केवल 4 मशीनों पर काम हो रहा है. पैसे आ नहीं रहे, लेकिन मजदूरों को उनका वेतन, बैंक की ईएमआई और बिजली का बिल तो भरना ही है. करीब 1 लाख 40 हज़ार का बिल बकाया है, लेकिन जब पैसे ही नहीं हैं, तो वो यह बकाया कैसे भरें.
व्यापारी अहमद रज़ा कहते हैं, 'हालत यह है कि जितना 6 लोग हफ्ते में सामान बना रहे हैं, उतना ही सेल नहीं हो पाता. ऐसे में और 10 लोगों को कैसे काम दें. मार्केट की पोजीशन खराब है. दुकान का ऊपर से 30 हज़ार किराया है, साथ ही 7 हज़ार लाइट बिल. मजदूर हैं, उनको भी पैसा देना है.कुल खर्च 80 हज़ार है जो दे पाना मुश्किल है.' सराजुद्दीन अंसारी की भी ऐसी ही स्थिति है. वे बताते हैं, 'बिजली का बिल 1 लाख 39 हज़ार रुपये आया है. BEST वालों ने जीना हराम कर दिया. सुबह-शाम 3 बार फोन करते थे कि तुम्हें भरना ही है. मैंने लोगों से उधार लेकर 60 हज़ार रुपये भरे हैं.उनका कहना है कि 25 तारीख को कुछ और भरना होगा लेकिन मेरे पास अब पैसे नहीं हैं.'
Coronavirus की दूसरी लहर पर काबू पाने में 'धारावी मॉडल' ने इस तरह की मदद
धारावी में इस तरह के कई छोटे-छोटे कारखाने हैं और सभी की कहानी एक जैसी है.धारावी गारमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष बब्बू खान बताते हैं कि अब व्यापारियों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो अपने मजदूरों का ख्याल रख सकें. बब्बू कहते हैं, 'हमारे पास जो काम करने वाले लोग हैं, हम उनको एडवांस देकर थक चुके हैं..हमारे पास काम नहीं है. अगर हम इसे बंद कर दें तो वो मजदूर गांव चले जाएंगे और हमारी परेशानी बढ़ जाएगी.आज हमारे पास 30 फीसदी काम है, इसमें हम कितनों का पेट भरेंगे.' गारमेंट के अलावा चमड़ा (leather) के सामान को लेकर भी धारावी में हालात कोई अलग नहीं हैं. तीन पीढ़ियों से इस व्यवसाय से जुड़े चंद्रकांत पोटे बताते हैं कि कई व्यापारी किराए पर दुकान चला रहे थे, उन्होंने इसे बंद कर दिया है.कई अन्य भी इसी राह पर हैं. इनके दुकान में 12 बजे से पहले ग्राहक आते नहीं हैं और सरकार का कहना है कि 4 बजे के बाद दुकानों को खुला नहीं रखा जा सकता. इन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर यह अपना व्यापार कैसे चलाएं.' व्यापारी चंद्रकांत कहते हैं, 'कितनी भी कोशिश करेंगे तो 11 से पहले हमारी दुकान खुलती नहीं है. उसके बाद 3 से 4 घंटों में आने वाले लोग कम हैं.उस समय लोग काम करेंगे या हमारे यहां आएंगे. पहले लोग काम करने के बाद यहां 5 बजे के बाद आते थे.. अब लोग नहीं आते हैं.
काम नहीं होने के वजह से धारावी में मजदूर नहीं हैं, जिसकी वजह से दोपहर के समय मजदूरों से भरे रहने वाले होटल खाली पड़े हैं. दुकान के मालिक का कहना है कि मजदूरों के नहीं होने का असर इनके व्यापार पर पड़ा है और इसलिए इन्होंने अपने यहां से 3 लोगों को काम से निकाल दिया है. होटल मालिक मोहम्मद अयूब कहते हैं, 'हमने स्टाफ से कुछ लोगों को कम किया है, केवल 2-3 लोगों से हम काम चला रहे हैं.' सरकार की ओर से करोड़ों रुपयों के पैकेज का ऐलान ज़रूर किया जाता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि व्यापारी और मजदूर, दोनों परेशान हैं. साथ ही स्थानीय प्रशासन की ओर से कोरोना को रोकने के लिए व्यापार पर लगाई गई पाबंदियों ने इनकी परेशानी और बढ़ा दी है.