मेलघाट में कुपोषण से 65 बच्चों की मौत पर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त, महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार

न्यायालय ने इस आदिवासी क्षेत्र में कुपोषण के कारण बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की बढ़ती मृत्यु दर पर गहरी चिंता व्यक्त की है. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटील की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर कड़े शब्दों में टिप्पणी की.

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  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण से 65 बच्चों की मौत पर राज्य सरकार की लापरवाही पर चिंता जताई है
  • न्यायालय ने बच्चों, गर्भवती महिलाओं और माताओं की बढ़ती मृत्यु दर को गंभीर स्वास्थ्य समस्या बताया है
  • कोर्ट ने राज्य सरकार को कुपोषण की समस्या को गंभीरता से लेने और सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश दिए हैं
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मुंबई:

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अमरावती के मेलघाट में कुपोषण से 65 बच्चों की मौत पर चिंता जताई और राज्य सरकार की लापरवाही की आलोचना की. महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में जून महीने से अब तक कुपोषण के कारण 65 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है.

न्यायालय ने इस आदिवासी क्षेत्र में कुपोषण के कारण बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की बढ़ती मृत्यु दर पर गहरी चिंता व्यक्त की है. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटील की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर कड़े शब्दों में टिप्पणी की. “न्यायालय 2006 से इस समस्या पर आदेश दे रहा है. हालांकि, सरकार कागज पर सब कुछ व्यवस्थित होने का दावा करती है लेकिन, जमीन पर स्थिति अलग है. इससे पता चलता है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर कितनी गंभीर है. आपका रवैया बेहद गैर-जिम्मेदार है."

खंडपीठ ने कहा कि जून से अब तक शून्य से छह महीने के आयु वर्ग के 65 बच्चों की कुपोषण से मौत होना राज्य के लिए चिंताजनक और भयानक बात है, और सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. न्यायालय ने राज्य सरकार को कुपोषण के प्रश्न को अत्यंत गंभीरता से लेने के निर्देश दिए. कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग, आदिवासी, महिला एवं बाल कल्याण, और वित्त - इन चार विभागों के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को अगली सुनवाई में उपस्थित रहने का आदेश दिया.

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि राज्य सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर गंभीर नहीं है. कोर्ट ने इन चारों विभागों के प्रधान सचिवों को उठाए गए कदमों पर एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही, न्यायालय ने सरकार को सुझाव दिया कि आदिवासी क्षेत्रों की गंभीर स्थिति को देखते हुए, वहां नियुक्त होने वाले डॉक्टरों को अधिक वेतन दिया जाना चाहिए.

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