सतना में मासूमों को HIV का 'जहर' देने वाला कौन ? 200 डोनरों के रिकॉर्ड में छिपे हैं गुनहगार, जांच तेज

Satna HIV Case: सतना में थैलेसीमिया पीड़ित मासूमों के HIV संक्रमित होने के मामले में नया मोड़ सामने आया है. क्या स्थानीय स्तर पर हुए प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन ने मासूमों की जान जोखिम में डाली? जानिए स्वास्थ्य मंत्री के तर्क और विपक्ष के 'क्रिमिनल नेगलिजेंस' के आरोपों के बीच अब तक की जांच में क्या निकला.

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Satna Children HIV Positive: सतना से एक ऐसा मामला जो सिर्फ लापरवाही नहीं… बल्कि मासूमों के साथ किया गया 'खूनी पाप'है. यहां थैलेसीमिया से पीड़ित 5 मासूम बच्चे अपनी बीमारी से लड़ने के लिए अस्पताल में खून चढ़वाने आए थे, लेकिन सिस्टम की अनदेखी ने उन्हें ताउम्र का दर्द दे दिया. ये बच्चे अब एचआईवी (HIV) पॉजिटिव हो गए हैं. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि महीनों तक इस खौफनाक सच को छिपाया क्यों गया? इसके अलावा सवाल ये भी है कि गलती कहां हुई और ये संक्रमित खून कहां से कैसे आया?

मरीजों को खून नहीं जहर दिया गया 

अब तक हुई जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि इन बच्चों तक संक्रमण किसी न किसी डोनर के जरिए ही पहुंचा है. जिस खून को जिंदगी बचाने के लिए बच्चों के शरीर में चढ़ाया गया था, उसी ने उन्हें इस जानलेवा बीमारी की ओर धकेल दिया. हैरानी की बात यह है कि करीब 9 महीने पहले ही बच्चे पॉजिटिव पाए गए थे, लेकिन इसकी भनक अस्पताल या जिला प्रशासन को नहीं थी. सिस्टम की लापरवाही का आलम यह है कि जांच टीम में उन्हीं लोगों को शामिल किया गया है, जो ब्लड बैंक के जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं.

 अब जांच इस बात की हो रही है कि संक्रमण का असली स्रोत क्या है.

एनडीटीवी के खुलासे की अनदेखी 

यह मामला और भी गंभीर हो जाता है जब हम याद करते हैं कि कैसे 'ऑपरेशन ब्लड' के जरिए NDTV ने पहले ही खून के काले कारोबार का पर्दाफाश किया था. अगर सरकार ने तब जागकर कार्रवाई की होती, तो शायद आज ये मासूम इस हाल में न होते. सतना जिला अस्पताल में 2009 से होल ब्लड से पैकसेल और प्लाज्मा अलग करने का काम हो रहा है. आशंका जताई जा रही है कि जिस प्लेटलेट्स का उपयोग स्थानीय स्तर पर किया गया, कहीं संक्रमण वहीं से तो नहीं फैला.इसे आंकड़ों की जुबानी और अच्छे से समझते हैं. 

क्या प्लेटलेट्स से फैला संक्रमण? 

जांच अब इस बात पर टिकी है कि आखिर चूक हुई कहां. दरअसल, अस्पताल से जो प्लाज्मा बाहर जाता है, उसे एक प्राइवेट एजेंसी खरीदती है और वह उसकी तीन स्तरों पर कड़ी जांच करती है. जानकारों का कहना है कि अगर प्लाज्मा खराब होता तो वह एजेंसी तुरंत बता देती. लेकिन बच्चों को चढ़ाए गए 'प्लेटलेट्स' की जांच लोकल लेवल पर ही हुई. अब शक की सुई इसी ओर घूम रही है कि कहीं प्लेटलेट्स की जांच में हुई लापरवाही ने ही मासूमों की रगों में जहर तो नहीं घोल दिया.

मंत्री बोले- हर एंगल से कर रहे हैं जांच

इस मामले पर स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल का कहना है कि विभाग हर एंगल से जांच कर रहा है. उन्होंने बताया कि एक बच्चे के माता-पिता तो पहले से संक्रमित थे. बाकी बच्चों को लेकर उनका तर्क है कि थैलेसीमिया के मरीज सिर्फ एक ही सरकारी अस्पताल के भरोसे नहीं रहते. कभी वे प्राइवेट अस्पताल चले जाते हैं, तो कभी किसी रिश्तेदार से खून ले लेते हैं. प्रशासन अब यह पता लगा रहा है कि इन बच्चों ने पिछले महीनों में कहां-कहां से खून चढ़वाया है.

विपक्ष:ये 'क्रिमिनल नेगलिजेंस' है

सरकार सो रही है इधर कांग्रेस ने इस मामले को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया है. कांग्रेस नेता डॉ. विक्रांत भूरिया का कहना है कि यह कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि सीधे-सीधे 'क्रिमिनल नेगलिजेंस' यानी आपराधिक लापरवाही है. उनका कहना है कि सरकार की नींद तभी खुलती है जब बच्चे मरने लगते हैं. विपक्ष ने मांग की है कि जिला स्वास्थ्य अधिकारी को तुरंत बर्खास्त किया जाए और सरकार इन पीड़ित बच्चों के पूरे जीवन की जिम्मेदारी ले. बहरहाल अब सवाल ये नहीं कि जांच कितनी टीमें करेंगी सवाल ये है कि क्या जिम्मेदारी तय होगी? या फिर इन मासूमों की फाइल भी सिस्टम की लाल फीताशाही में खो जाएगी?

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