- MP में पिछले दो वर्षों में 329 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं
- भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद भी लूट, चोरी और वाहन चोरी जैसे अपराधों में वृद्धि
- मंदसौर के मल्हारगढ़ थाने के पुलिसकर्मियों पर एक छात्र को अफीम रखने का झूठा एनडीपीएस केस में फंसाने का आरोप लगा
मध्यप्रदेश में कानून की रखवाली करने वाली खाकी यानि पुलिस डिपार्टमेंट खुद कानून के कटघरे में खड़ दिखाई दे रहा है. मंदसौर के मल्हारगढ़ थाने का मामला, जहां एक छात्र को बस से उठाकर पीटा गया और फिर एनडीपीएस के केस में फंसा दिया गया, अब पूरे प्रदेश की पुलिसिंग व्यवस्था पर सवाल बन गया है. यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि उस गहरी बीमारी की तस्वीर है, जिसका खुलासा अब विधानसभा के आधिकारिक आंकड़ों ने भी कर दिया है.
2 साल में 329 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले
विधानसभा में कांग्रेस विधायक बाला बच्चन के सवाल के जवाब में राज्य सरकार ने माना है कि पिछले दो वर्षों में प्रदेश के 329 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं. इनमें 61 मामलों की जांच अभी जारी है, जबकि 259 मामलों में चालान पेश हो चुके हैं. सबसे ज्यादा मामले भोपाल शहर (48) में दर्ज हुए हैं, इसके बाद ग्वालियर (27) का नंबर आता है. सिवनी में 18, इंदौर (शहरी) में 17, इंदौर (ग्रामीण) में 17, गुना में 17 और बालाघाट में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 13 मामले दर्ज हैं, चौंकाने वाली बात यह है कि भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद भी लूट, चोरी और वाहन चोरी जैसे अपराध घटने के बजाय बढ़े हैं.
पुलिस ने एक छात्र को अफीम रखकर फंसाया!
इन आंकड़ों को सबसे डरावना चेहरा दिया है, मंदसौर के मल्हारगढ़ थाने ने जिसे देश का 9वां सर्वश्रेष्ठ थाना बताया गया. इसी थाने के थाना प्रभारी, दो सब इंस्पेक्टर और तीन आरक्षकों को निलंबित किया गया है. आरोप है कि पुलिस ने एक छात्र को अफीम रखकर फंसाया. पीड़ित सोहनलाल के परिवार ने एनडीटीवी को बताता है कि वह 12वीं फर्स्ट डिविजन से पास हो चुका था और पीएससी की तैयारी करना चाहता था. उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वह किसी काम से बस में सफर कर रहा था.
पैसे नहीं देने पर एनडीपीएस के झूठे केस में फंसा दिया
सोहनलाल के भाई कथिराम गुलेचा ने NDTV से बातचीत में जो कहा, 'वह पुलिस की कार्यप्रणाली पर सीधा आरोप है. सोहनलाल किसी काम से मंदसौर से प्रतापगढ़ जाने के लिए बस में बैठा था. करीब 10 किलोमीटर बाद तीन-चार पुलिसकर्मी बस में चढ़े, उसे सुबह उठा लिया और शाम को उस पर एनडीपीएस का केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया. करीब छह घंटे तक उसे बंद रखकर पीटा गया. शाम को केस दर्ज हुआ, उसे कोर्ट में पेश किया गया और जेल भेज दिया गया. वह मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर गया था. इस समय सोहन बोलने की हालत में नहीं है, वह डरा हुआ है, अवसाद में है. बिल्कुल चुप और सहमा हुआ. उसने बस इतना कहा कि उसे बस से उतारकर एक कमरे में रखा गया, पीटा गया और फिर शाम को पैसे नहीं देने पर एनडीपीएस के झूठे केस में फंसा दिया गया. आज तक उसके खिलाफ कोई मामला नहीं है, न ही किसी से कोई झगड़ा हुआ, जिसकी वजह से वह फंस सकता. हम न्याय चाहते हैं और इसमें शामिल सभी लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग करते हैं.'
हाई कोर्ट में पुलिस ने गलती स्वीकार की
इस मामले ने तब और सनसनीखेज मोड़ ले लिया, जब मंदसौर एसपी विनोद मीणा ने खुद हाई कोर्ट में पुलिस की गलती स्वीकार कर ली. जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ के सामने पेश होकर एसपी ने माना कि मल्हारगढ़ थाने के स्टाफ और सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मियों ने पूरी कार्रवाई में गंभीर चूक की. एसपी ने कोर्ट को बताया कि युवक को जबरन बस से उतारा गया, थाने ले जाया गया और उसके खिलाफ 2.5 किलो अफीम रखने का झूठा मामला दर्ज किया गया. सबसे अहम बात यह रही कि एसपी ने जांच अधिकारी के अदालत में दिए गए बयान को भी गलत बताया.
जब प्रदेश में 329 पुलिसकर्मी खुद आपराधिक मामलों में फंसे हों, जब 'मॉडल थाना' निर्दोष युवकों को फंसाने का आरोप झेल रहा हो, और जब एसपी को अदालत में अपनी ही पुलिस की गलती माननी पड़े तो यह महज एक घटना नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नैतिक विफलता है.














