हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2020) मनाया जाता है. महिलाओं के हितों के प्रति लोगों को जागरूक करने और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई का इतिहास काफी पुराना है. दुनियाभर के देशों में महिलाओं के प्रति समाज में हुए बदलावों के पीछे का इतिहास बहुत लंबा है, जिस वजह से महिला दिवस की शुरुआत हुई. यहां तक फेमिनिज्म शब्द कैसे उत्पन्न हुआ और किस देश ने महिलाओं को सबसे पहले वोट देने का अधिकार दिया. इन सब छोटी-छोटी घटनाओं और महिलाओं द्वारा किए गए बड़े-बड़े आंदोलनों के बाद ही वो इस समाज में अपनी एक जगह बना पाई हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि 1840 से अब तक का महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई का इतिहास.
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- 1848: महिलाओं के अधिकार का पहला सम्मेलन अमेरिका के न्यूयॉर्क के सेनेका फॉल्स में हुआ
1848 में यूएसए में महिलाओं को गुलामी विरोधी सम्मेलनों में बोलने से रोक दिया जाता था. इस वजह से एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन और ल्यूक्रेटिया मॉट ने न्यूयॉर्क में पहले महिला अधिकार सम्मेलन का आयोजन किया. इसमें उन्होंने कुछ 100 लोगों को इकट्ठा किया था और महिलाओं के लिए नागरिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक अधिकारों की मांग की थी.
कहां से आया फेमिनिज्म शब्द
एक शब्द से अधिक, फेमिनिज्म एक आंदोलन है जो महिलाओं के सामाजिक, राजनीतिक, कानूनी और आर्थिक अधिकारों की वकालत करता है. पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल 1837 में फ्रांस के एक डॉक्यूमेंट में किया गया था. इस शब्द का इस्तेमाल सोशलिस्ट चार्ल्स फूरियर ने किया था. अपने इस डोक्यूमेंट में उन्होंने भविष्य में महिलाओं की मुक्ति का वर्णन किया था.
हालांकि, 1900 के दशक की शुरुआत में यह शब्द महिलाओं के मताधिकार से जुड़ गया और इसका अर्थ कई मायनों में बदल गया. विशेष रूप से इंटसेक्शनल फेमिनिज्म का अर्ध इस बात पर केंद्रित हो गया कि महिलाएं किस तरह से जाति, वर्ग, धर्म और यौन अभिविन्यास जैसे कारकों के आधार पर भेदभाव का सामना करती हैं.
- 1873: न्यूजीलैंड बना था महिलाओं को मताधिकार का हक देने वाला पहला राष्ट्र
270 मीटर लंबी याचिका पर लगभग 32,000 महिलाओं ने हस्ताक्षर किए थे. इसके कुछ वक्त बाद ही न्यूजीलैंड पहला ऐसा स्वशासित राष्ट्र बना, जहां महिलाओं को मतदान का अधिका दिया गया था.
- 1911: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस- महिलाओं का दिन
8 मार्च को वार्षिक रूप से चिह्नित, 1911 में पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में महिलाओं के मताधिकार और श्रम अधिकारों के लिए दस लाख से अधिक लोगों द्वारा मनाया गया था. अपने शुरुआती वर्षों में, यह प्रथम विश्व युद्ध का विरोध करने के लिए एक आंदोलन बनकर उभरा था.
- 1920: जब मिस्त्र में एफजीएम के खिलाफ खड़े हो गए थे डॉक्टर्स
अपनी तरह का यह पहला आंदोलन था, जब मिस्त्र की सोसाइटी ऑफ फिजिशियनों ने एफजीएम (फीमेल गेनिटल म्यूटिलेशन) के खिलाफ आवाज उठाई थी और इससे महिलाओं के शरीर पर नकारात्मक प्रभाव होने की घोषणा करते हुए, परंपरा के खिलाफ जाने का फैसला किया था.
- 1929: नाइजीरिया में अबा महिलाओं का विरोध
औपनिवेशिक शासन के तहत अपनी सामाजिक हैसियत से दुखी होकर इब्गो महिलाएं, दक्षिण पूर्वी नाइजीरिया में अपनी साथी महिलाओं के लिए खजूर की पत्तियां भेजने लगीं. (उसी तरह से जिस तरह से आज के वक्त में लोग फेसबुक इंवाइट भेजते हैं). इसके बाद ये सभी महिलाएं एक साथ अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त प्रमुखों के खिलाफ गाकर, नाचकर और उनके घरों की दीवारों पर चीजों से मार कर उनके खिलाफ विरोध करने लगीं. हालांकि, इस विरोध के कारण महिलाओं पर हमले किए जाने लगे और आंदोलन ने भयंकर रूप ले लिया. इस कारण प्रमुखों को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा था.
- प्रथम और द्वितीय युद्ध से बदला काम का माहौल
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पुरुषों के युद्ध पर जाने के कारण महिलाओं को "अनैतिक" नौकरियां करनी पड़ीं. इस दौरान महिला युद्ध कार्यकर्ताओं की पश्चिमी संस्कृति आइकन, रोजी द रिवर को विश्व स्तर पर महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा.
- 1945: डबलिन, आयरलैंड में महिलाओं ने किया था विरोध
1945 में आयरलैंड के डबलिन में लोगों को मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा था. यहां काम की खराब स्थिति, कम तनख्वाह, ओवरटाइम और सीमित छुट्टियों के कारण 1500 से अधिक कपड़े धोने वाली महिलाएं हड़ताल पर चली गई थीं. उस वक्त डबलिन में कपड़े धोने का व्यापार काफी बड़े स्तर पर होता था. हालांकि, 3 महीने तक कपड़े साफ न हो पाने के कारण प्रमुख को महिलाओं की मांगे माननी पड़ी और इस तरह सभी उनकी जीत हुई.
- 1945: संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत
द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 1945 में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की थी. इसका चार्टर लैंगिक समानता को सुनिश्चित करता है.
- 1946: यादगार भाषण
1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उद्घाटन सत्र में, अमेरिकी महिला एलीनॉर रूजवेल्ट ने "दुनिया की महिलाओं के लिए एक खुला पत्र" पढ़ा था, जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनकी बढ़ती भागीदारी का जिक्र किया गया था.
- 1960: डोमिनिकन रिपब्लिक में जब 3 बहनों ने छेड़ा था आंदोलन
डोमिनिकन गणराज्य में मिराबल बहनों ने तानाशाही के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई थी और राफेल ट्रूजिलो का विरोध किया था. मिनर्वा, मारिया टेरेसा और पेट्रिया तीनों बहनों के तानाशाही राफेल का विरोध करने के चलते 25 नवंबर 1960 को उनकी हत्या कर दी गई थी. इसके बाद जनता का आक्रोश, आंदोलन का रूप ले लेता है और एक साल के अंदर डोमिनिक गणराज्य तानाशाही शासन से आजाद हो जाता है.
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- 1970: पहला एक्टिविस्ट सम्मेलन
यह पहला अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष था. महिलाओं को समर्पित संयुक्त राष्ट्र का पहला दशक और मेक्सिको में महिलाओं के लिए पहला विश्व सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात की गई थी.
- महिलाओं द्वारा अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए जाने के लगभग एक शताब्दी के बाद यानी 1980 तक कई देशों में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिल गया था. हालांकि, अब भी कई मायनों में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.
- 1993: महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन पर घोषणा
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के रूपों को स्पष्टता से संबोधित करने और परिभाषित करने वाला यह पहला अंतर्राष्ट्रीय साधन है.
- 1994: 23 वर्षीय आईसपीडी प्रोग्राम शुरू किया गया
यह एक 23 वर्षीय कार्य योजना है जो लोगों और उनके अधिकारों के विकास पर केंद्रित है और महिलाओं के सेक्शुअल और रीप्रोडक्टिव हेल्थ को सभी के कल्याण के लिए महत्वूर्ण मानती है.
- 1995: बीजिंग ने बनाया अपना एक्शन प्लान
1995 में बीजिंग द्वारा महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप बनाया गया था. इसमें 12 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात की गई है.
- 2000: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 1325
यह पहला यूएन कानून और राजनीतिक ढांचा है जिसके जरिए ये पहचानने की कोशिश की जा रही है कि युद्ध, महिलाओं को किस तरह से प्रभावित करता है. साथ ही महिलाओं की संघर्षों को रोकने में कितनी भागीदारी रहती है.
- 2003: लिबेरिया के मोनरोविया में शांति के लिए महिलाओं ने उठाई थी आवाज
लिबेरिया में चल रहे गृह युद्ध ने हजारों लिबरियन महिलाओं को आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया था. इस आंदोलन की शुरुआत लेयमा गॉबी ने की थी, जिसके तहत उन्होंने अपने साथ हजारों महिलाओं को इकट्ठा किया था और सेक्स स्ट्राइक के लिए प्रेरित किया था, ताकि सभी महिलाएं अपने पतियों को शांति वार्ता में भाग लेने के लिए मना सकें. यह आंदोलन इतना सफल रहा था कि 14 साल का गृह युद्ध समाप्त हो गया था.
- 2006: भारत के उत्तर प्रदेश में महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए गुलाबी गैंग का गठन
भारत के उत्तर प्रदेश में गरीबी का सामना कर रहे बांदा जिले में कुछ महिलाओं ने गुलाबी गैंग का गठन किया था. इसके तहत ये महिलाएं अपने पड़ोस में रहने वाली महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती थी और उन्हें न्याय दिलाती थीं. घरेलू हिंसा के खिलाफ शुरू किए गए इस आंदोलन से धीरे-धीरे कई सारी महिलाएं जुड़ गईं. इस गैंग को गुलाबी गैंग इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये गुलाबी कपड़े पहनकर महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ काम करती हैं.
- 2013: मलाला यूसुफजई का पढ़ाई पर यादागार भाषण
एक स्कूल में पढ़ने वाली लड़की और पाकिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही मलाला यूसुफजई पर हुए हमले ने एक पल में दुनिया को हिला दिया था. इसके बाद 2013 में अपने 16वें जन्मदिन पर मलाला यूसुफजई ने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज की थी और सभी के लिए पढ़ाई की जरूरत पर बात की थी.
- 2017: महिलाओं का मार्च
21 जनवरी 2017 को विश्व स्तर पर 3.5 से लेकर 5.5 मिलियन (35 से 55 लाख) लोग महिला मार्च का हिस्सा बने थे. भारत में एक छात्रा के साथ सामूहिल बलात्कार के बाद, फेमिनिस्ट को उनके अधिकार मिलने के बाद लैटिन अमेरिका में और नाइजीरिया में लगभग 280 स्कूली लड़कियों के अपहरण के बाद इस मार्च का आयोजन किया गया था.
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