इमरजेंसी में समय सबसे कीमती होती है
नई दिल्ली:
दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल मरीजों की जान बचाने के लिए पहले 60 मिनट जान बचाने के लिहाज से जरूरी होते हैं, जबकि दिल और दिमाग के दौरे में सिर्फ 4 मिनट का समय होता है. ऐसे में अब होम्योपैथिक डॉक्टर भी इमरजेंसी के मरीजों की जान बचा सकेंगे. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) में महाराष्ट्र से कोर सदस्य डा. सुरेखा फासे ने कहा कि मोदी सरकार ने अपने वायदों पर अमल करते हुए स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली को उन्नत बनाने और गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों समेत भारत की संपूर्ण जनता को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से एनएमसी बिल 2017 पेश किया है.
होम्योपैथिक दवाई से हो सकेगा चिकनगुनिया का इलाज
उन्होंने कहा कि एनएमसी बिल में प्रस्तावित ब्रिज कोर्स करने के बाद होम्योपैथिक डॉक्टर भी इमरजेंसी के मरीजों की जिंदगी बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे क्योंकि इमरजेंसी में समय सबसे कीमती होती है. अगर आपने समय गंवा दिया तो आप मरीज की जान लाख चाहने पर भी आप नहीं बचा सकते.
डा. सुरेखा ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल इमरजेंसी होने पर समय पर मरीजों को इलाज मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती होती है. इस चुनौती से मुकाबले के लिए सरकार ने ग्रामीण स्तर पर प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) और सबसेंटर स्थापित किए हैं, पर गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर और सब सेंटर में डॉक्टरों की काफी कमी होती है. इसके अलावा गांवों में खराब सड़कें और खराब कनेक्टिवटी से भी इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की जान बचाने की संभावना कम रहती है. इससे हालात अक्सर बद से बदतर बन जाते हैं. इस स्थिति में ग्रामीण स्तर पर तैनात स्थानीय डॉक्टर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.
'आयुर्वेद की प्रैक्टिस का लाइसेंस पाने के लिए पास करनी होगी एग्जिट परीक्षा'
उन्होंने कहा कि एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर एमबीबीएस डॉक्टर मिलते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों, जहां विशाल आबादी रहती है, में एमबीबीएस डॉक्टर कम ही प्रैक्टिस करने में दिलचस्पी रखते हैं. इस स्थिति में होम्योपैथिक और आईएसएम डॉक्टर, जिन्हें वास्तविक अर्थो में जनरल प्रैक्टिशनर माना जाता है, महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है और भारतीय स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी बनकर उसे मजबूती दे सकते हैं.
डा. सुरेखा ने कहा कि जनरल प्रैक्टिशनर भारतीय स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से होम्योपैथिक डॉक्टरों को अब तक एलोपैथिक दवाएं लिखने की सुविधा न देकर इस रीढ़ की हड्डी को लकवे से पीड़ित कर दिया गया था. हर पैथी की अपनी सीमाएं हैं, होम्योपैथिक दवाओं से इमरजेंसी में डॉक्टरों के पास आए मरीज को तुरंत कोई फायदा नहीं हो सकता. इस हालात में हमारे सामने केवल दो ही विकल्प बचते हैं कि या तो हम कानून में बदलाव कर होम्योपैथिक या भारतीय चिकित्सा पद्धति के तहत प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को मरीजों को इमरजेंसी ट्रीटमेंट देने के हथियार से लैस करें या कुछ भी न करें और मरीज को अपने हाल पर छोड़ दें.
उन्होंने कहा कि देश की स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, बहुसंख्यक आबादी को लाभ देने और मरीजों की जान बचाने के मकसद से होम्योपैथिक और आईएसएम डॉक्टरों को मेनस्ट्रीम में लाना बहुत जरूरी है.
Video: हटो... इमरजेंसी है... Input: IANS
होम्योपैथिक दवाई से हो सकेगा चिकनगुनिया का इलाज
उन्होंने कहा कि एनएमसी बिल में प्रस्तावित ब्रिज कोर्स करने के बाद होम्योपैथिक डॉक्टर भी इमरजेंसी के मरीजों की जिंदगी बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे क्योंकि इमरजेंसी में समय सबसे कीमती होती है. अगर आपने समय गंवा दिया तो आप मरीज की जान लाख चाहने पर भी आप नहीं बचा सकते.
डा. सुरेखा ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल इमरजेंसी होने पर समय पर मरीजों को इलाज मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती होती है. इस चुनौती से मुकाबले के लिए सरकार ने ग्रामीण स्तर पर प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) और सबसेंटर स्थापित किए हैं, पर गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर और सब सेंटर में डॉक्टरों की काफी कमी होती है. इसके अलावा गांवों में खराब सड़कें और खराब कनेक्टिवटी से भी इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की जान बचाने की संभावना कम रहती है. इससे हालात अक्सर बद से बदतर बन जाते हैं. इस स्थिति में ग्रामीण स्तर पर तैनात स्थानीय डॉक्टर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.
'आयुर्वेद की प्रैक्टिस का लाइसेंस पाने के लिए पास करनी होगी एग्जिट परीक्षा'
उन्होंने कहा कि एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर एमबीबीएस डॉक्टर मिलते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों, जहां विशाल आबादी रहती है, में एमबीबीएस डॉक्टर कम ही प्रैक्टिस करने में दिलचस्पी रखते हैं. इस स्थिति में होम्योपैथिक और आईएसएम डॉक्टर, जिन्हें वास्तविक अर्थो में जनरल प्रैक्टिशनर माना जाता है, महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है और भारतीय स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी बनकर उसे मजबूती दे सकते हैं.
डा. सुरेखा ने कहा कि जनरल प्रैक्टिशनर भारतीय स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से होम्योपैथिक डॉक्टरों को अब तक एलोपैथिक दवाएं लिखने की सुविधा न देकर इस रीढ़ की हड्डी को लकवे से पीड़ित कर दिया गया था. हर पैथी की अपनी सीमाएं हैं, होम्योपैथिक दवाओं से इमरजेंसी में डॉक्टरों के पास आए मरीज को तुरंत कोई फायदा नहीं हो सकता. इस हालात में हमारे सामने केवल दो ही विकल्प बचते हैं कि या तो हम कानून में बदलाव कर होम्योपैथिक या भारतीय चिकित्सा पद्धति के तहत प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को मरीजों को इमरजेंसी ट्रीटमेंट देने के हथियार से लैस करें या कुछ भी न करें और मरीज को अपने हाल पर छोड़ दें.
उन्होंने कहा कि देश की स्वास्थ्य रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, बहुसंख्यक आबादी को लाभ देने और मरीजों की जान बचाने के मकसद से होम्योपैथिक और आईएसएम डॉक्टरों को मेनस्ट्रीम में लाना बहुत जरूरी है.
Video: हटो... इमरजेंसी है... Input: IANS
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