
Green Bakrid Vs Virtual Bakrid: बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक अहम त्योहार है जो कुर्बानी की परंपरा से जुड़ा है. लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है, इस त्योहार को मनाने का तरीका भी बदल रहा है. अब बकरीद सिर्फ जानवरों की कुर्बानी तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इसमें दो नए विचार तेजी से उभर रहे हैं – 'ग्रीन बकरीद' और 'वर्चुअल बकरीद'.
इन दोनों ही विचारों में त्योहार की भावना को बनाए रखते हुए इसे पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और तकनीक के इस्तेमाल से जोड़ने की कोशिश की जा रही है. आइए जानते हैं कि ये दोनों क्या हैं और इन्हें लेकर समाज में क्या बहस चल रही है.
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क्या है ग्रीन बकरीद? (What Is Green Bakrid)

'ग्रीन बकरीद' का विचार कहता है कि त्योहार की खुशी मनाने के लिए जानवर की कुर्बानी जरूरी नहीं है. इसके बजाय अगर लोग पेड़ लगाएं, जरूरतमंदों को खाना या पैसे दें और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों से बचें, तो ईद का पैगाम और भी पवित्र हो सकता है. इस विचार को पेटा जैसे एनिमल वेलफेयर संगठनों और कुछ जागरूक मुस्लिम युवाओं ने बढ़ावा दिया है. सोशल मीडिया पर #GreenBakrid जैसे ट्रेंड्स चलाए जाते हैं, जहां लोग बकरे की जगह पेड़ के साथ 'सेल्फी विद सैक्रिफाइस' जैसी मुहिम में हिस्सा लेते हैं. यह सोच बताती है कि असली कुर्बानी सिर्फ जानवर की नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं और स्वार्थों की भी हो सकती है – और यही भावना अल्लाह के प्रति समर्पण का असल रूप है.
क्या है वर्चुअल बकरीद? (What Is Virtual Bakrid)कोविड-19 के दौरान जब लोग घरों में बंद थे, मस्जिद जाना और जानवरों की खरीदारी करना मुश्किल हो गया था. तब से वर्चुअल बकरीद की शुरुआत हुई. इस नई परंपरा में लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से कुर्बानी का जानवर बुक करते हैं.
कुर्बानी फार्म या संस्था के जरिए करवाई जाती है और फिर मीट घर पहुंचाया जाता है या किसी जरूरतमंद को दान कर दिया जाता है. कुछ वेबसाइट्स लाइव स्ट्रीमिंग भी करती हैं. जिससे आप मोबाइल या लैपटॉप पर कुर्बानी का पूरा दृश्य देख सकते हैं. इससे लोगों को भीड़-भाड़ से राहत मिलती है, समय बचता है और विदेशों में रहने वाले या व्यस्त लोग भी इस परंपरा को निभा सकते हैं.
बकरीद सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि हजारों लोगों के लिए रोजगार का साधन भी है. किसान, पशुपालक, ट्रांसपोर्टर, कसाई और बाजार से जुड़े कारीगर – सभी इस त्योहार का सालभर इंतजार करते हैं. इनमें सिर्फ मुस्लिम नहीं, बल्कि हिंदू, दलित, आदिवासी जैसे कई तबकों के लोग शामिल होते हैं. बकरा मंडियों की रौनक और बिक्री से इनका घर चलता है. ऐसे में ग्रीन या वर्चुअल बकरीद से इन लोगों के रोजगार पर असर पड़ सकता है – ये एक बड़ा सवाल बनकर सामने आता है.
सोशल मीडिया पर बहस तेजजैसे ही ग्रीन और वर्चुअल बकरीद सोशल मीडिया पर चर्चा में आईं, लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गईं. कोई कहता है, "हर धर्म में जीव हत्या गलत है", तो कोई तंज कसता है - "सिर्फ बकरीद पर ही सबको जानवरों से प्यार क्यों याद आता है?" कुछ लोग मानते हैं कि यह ट्रेंड एक दिन की दिखावा बनकर रह जाएगा, क्योंकि बाकी दिन तो लोग मांस खाते ही हैं. प्रस्तुति: रोहित कुमार
(यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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