Party Symbol Rule; लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने बिहार में चुनावों से ठीक पहले अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया है. उन्होंने बताया है कि चुनाव आयोग की तरफ से उन्हें चुनाव चिन्ह मिल गया है. उनकी पार्टी का नाम 'जनशक्ति जनता दल' है, जिसे ब्लैक बोर्ड चुनाव चिन्ह दिया गया है. अब ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल आता है कि क्या कोई मनचाहा चुनाव चिन्ह मांग सकता है? आइए जानते हैं कि चुनाव चिन्ह कैसे मिलता है और इसे लेकर क्या नियम होते हैं.
कैसे मिलता है चुनाव चिन्ह?
भारत में चुनाव आयोग ही पार्टियों को मान्यता देता है या फिर उनकी मान्यता को रद्द करता है. जब भी कोई नई पार्टी बनती है तो उसे चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करना होता है, साथ ही चुनाव चिन्ह की मांग भी करनी होती है. इसके लिए चुनाव आयोग की तरफ से पदाधिकारियों और सदस्यों की जानकारी मांगी जाती है. तमाम चीजों को देखने के बाद पार्टी को चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है.
कितने तरह के होते हैं चुनाव चिन्ह?
चुनाव चिन्ह दो तरह के होते हैं. जिनमें पहला रिजर्व चुनाव चिन्ह होता है, यानी बीजेपी का कमल, कांग्रेस का हाथ और आम आदमी पार्टी का झाड़ू का सिंबल रिजर्व है, ये किसी दूसरे दल को नहीं दिया जा सकता है. इसी तरह बाकी मान्यता प्राप्त दलों के चुनाव चिन्ह भी रिपीट नहीं होते हैं. वहीं दूसरे फ्री सिंबल होते हैं, जिन्हें नए राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को दिया जाता है.
क्या मिल सकता है मनपसंद चुनाव चिन्ह?
चुनाव आयोग की तरफ से तमाम फ्री सिंबल की एक लिस्ट तैयार होती है, जिसमें बहुत सारे चुनाव चिन्ह होते हैं. अगर आपको इनमें से कोई चुनाव चिन्ह पसंद है तो आप इसके लिए दावा कर सकते हैं, हालांकि इस पर किसी दूसरे दल या उम्मीदवार का दावा नहीं होना चाहिए. यानी अगर कोई चाहे कि वो बुलडोजर के सिंबल पर चुनाव लड़े तो ऐसा नहीं हो सकता है, क्योंकि इसका चुनाव आयोग की लिस्ट में शामिल होना जरूरी है.
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किन चुनाव चिन्हों पर पाबंदी?
चुनाव आयोग की तरफ से कई ऐसी चीजों पर पाबंदी लगाई गई है, जिन्हें चुनाव चिन्ह नहीं बनाया जा सकता है. इसमें बंदूक से लेकर चाकू और जूता तक शामिल है. यानी कोई भी ऐसी चीज जिससे हिंसा या फिर नकारात्मकता फैलती हो, उसे चुनाव चिन्हों की लिस्ट में शामिल नहीं किया जाता है. चुनाव आयोग हर बार कई नई चीजों को इस लिस्ट में शामिल करता है. हाल ही में कान की बाली, चूड़ी और चप्पल को भी इसमें शामिल किया गया था.
- चुनाव आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक चुनाव चिन्ह जाति या धर्म से जुड़ा नहीं होना चाहिए.
- राजनीतिक दल किसी खास चुनाव चिन्ह की मांग कर सकता है, लेकिन आखिरी फैसला चुनाव आयोग का होता है.
- कई चुनाव चिन्ह ऐसे हैं, जिन्हें पाने के लिए कई दल अपना दावा करते हैं. इन्हें फ्रीज कर दिया जाता है.
- उम्मीदवार को नामांकन के वक्त तीन चुनाव चिन्ह बताने होते हैं, जिनमें से एक उसे मिलता है.
क्यों लाए गए चुनाव चिन्ह?
भारत में चुनाव चिन्ह की शुरुआत 50 के दशक में हुई थी, जब भारत में पहली बार चुनाव होने जा रहे थे. इस दौरान भारत में साक्षरता दर काफी कम थी, यानी चुनाव आयोग को एक ऐसी व्यवस्था तैयार करनी थी, जो सभी के लिए आसान हो. इसीलिए चुनाव चिन्ह बांटने का फैसला लिया गया, जिससे लोग आसानी से सिंबल की पहचान कर पाएं और अपनी पसंदीदा पार्टी को बिना किसी दिक्कत के वोट करें. पहले लोकसभा चुनाव में 14 चुनाव चिन्ह जारी किए गए थे. एमएस सेठी ने पहली बार चुनाव चिन्ह बनाने का काम किया था.