एलियंस के राज से उठेगा पर्दा, इस चीज का इस्तेमाल कर रहे हैं भारत और जापान

क्या हम अकेले हैं? या हमारी तरह दूसरे प्लैनेट पर भी लोग रहते हैं? इस सवाल का जवाब ढुंढने के लिए भारत और जापान ने मिलकर योजना बनाई है.

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नई दिल्ली:

क्या एलियंस होते हैं? ये एक ऐसा सवाल है जिसपर कई जवाब मिल सकते हैं. जो ये मानते हैं वे ये कह सकते हैं कि हां होते हैं और जो नहीं मानते हैं उनका जवाब ना होगा. इस पर आपने कई फिल्में भी देखी होगी. लेकिन सही जवाब क्या होगा. दरअसल, भारत और जापान दुनिया के सबसे बड़े एस्ट्रोनॉमिकल इंस्ट्रूमेंट्स में से एक - थर्टी मीटर टेलीस्कोप (TMT) बनाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. यह लेटेस्ट ऑप्टिकल-इंफ्रारेड टेलीस्कोप, जिसमें 30-मीटर का बड़ा प्राइमरी मिरर है, यूनिवर्स के बारे में हमारी समझ में बड़ा बदलाव लाने का वादा करता है और यह इंसानियत के सबसे बड़े सवाल का जवाब भी दे सकता है.

क्या हम अकेले हैं?

TMT प्रोजेक्ट एक इंटरनेशनल पार्टनरशिप है जिसमें भारत, जापान और अमेरिका की दो बड़ी यूनिवर्सिटी शामिल हैं. इसका लक्ष्य पहले से कहीं ज़्यादा गहराई से कॉसमॉस को देखना, ब्लैक होल, दूर की गैलेक्सी की स्टडी करना और सबसे दिलचस्प बात, पृथ्वी के बाहर जीवन के संकेतों की खोज करना है. टोक्यो में जापान के कैबिनेट ऑफिस में नेशनल स्पेस पॉलिसी कमिटी के वाइस चेयर डॉ. साकू त्सुनेटा ने बताया, "एस्ट्रोनॉमर्स दूर के यूनिवर्स से ज़्यादा रोशनी इकट्ठा करने के लिए एक बड़ा मिरर चाहते हैं." "मिरर जितना बड़ा होगा, आप बहुत दूर की चीज़ों के बारे में उतनी ही ज़्यादा खोज कर पाएंगे."


TMT का 30-मीटर का मिरर मौजूदा टेलिस्कोप को बौना बना देगा,जिससे ऑब्जर्वेशन में बहुत ज़्यादा क्लैरिटी और गहराई आएगी. एक बड़े मिरर वाले ट्रेडिशनल टेलिस्कोप के उलट, TMT अपना बड़ा प्राइमरी मिरर बनाने के लिए 500 ठीक से अलाइन किए गए छोटे मिरर का इस्तेमाल करेगा. इस मुश्किल इंजीनियरिंग काम के लिए लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की जरूरत है - और यहीं पर भारत एक अहम रोल निभाता है.

डॉ. त्सुनेटा ने कहा, "एक बड़े मिरर के बजाय, हमारे पास एक 30-मीटर के प्राइमरी मिरर वाले 500 छोटे मिरर हैं." "हर मिरर की जगह और एंगल को ध्यान से एडजस्ट करना होगा। यह इंडियन टेक्नोलॉजी से किया गया है."

TMT कहां बनेगा?

TMT के लिए चुनी गई जगह हवाई में मौना केआ है, जो 4,000 मीटर की ऊंचाई पर है. यह जगह अपने साफ आसमान और कम से कम एटमोस्फेरिक दखल के लिए मशहूर है. जापान पहले से ही वहां 8.2-मीटर का टेलिस्कोप चला रहा है, जो 25 सालों से ज्यादा समय से नई खोज कर रहा है. डॉ. त्सुनेटा ने कन्फर्म किया, "कंस्ट्रक्शन के लिए हमारी मेन साइट हवाई में मौना केआ है." "यह एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्ज़र्वेशन के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है.

हालांकि, इस प्रोजेक्ट में मुश्किलें आ रही हैं. हवाई के मूल निवासी मौना केआ को पवित्र मानते हैं, जिससे कंस्ट्रक्शन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कल्चरल चिंताओं को दूर करने और सहमति लेने के लिए बातचीत चल रही है. डॉ. त्सुनेता ने ज़ोर देकर कहा, "हम उनकी इजाजत के बिना टेलिस्कोप नहीं बनाना चाहते." "यह एक लगातार चलने वाला प्रोसेस है."

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दिलचस्प बात यह है कि दूसरी जगहों पर भी बात हुई है, जिसमें भारत के लद्दाख में हानले भी शामिल है, जहां पहले से ही एक हाई-एल्टीट्यूड ऑब्जर्वेटरी है. हालांकि अभी कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यह संभावना ग्लोबल एस्ट्रोनॉमी में भारत की बढ़ती भूमिका को दिखाती है.

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