क्यों मिटती नहीं वोट वाली स्याही, 1 बूंद की कितनी होती है कीमत, जानिए

Voting Ink Facts: जब भी आप वोट डालते हैं तो आपकी उंगली पर एक स्याही लगाई जाती है, ये काफी खास स्याही होती है और इसे पिछले कई दशकों से इस्तेमाल किया जा रहा है.

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चुनावी स्याही

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं. पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर को और दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. बिहार में 14 नवंबर को वोटों की गिनती होगी और नतीजे सामने आएंगे. वोटिंग के दौरान जो तस्वीरें सामने आती हैं, उनमें आपको वोटिंग वाली स्याही जरूर दिखती होगी, जब भी आपने वोट डाला होगा, तब आपकी उंगली पर भी यही स्याही लगाई गई होगी. ये स्याही काफी खास होती है और लाख कोशिशों के बावजूद नहीं मिटती है. ये पहले नीली और फिर गहरे काले रंग की हो जाती है और इसका रंग हटने में एक से दो महीने तक लग जाते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि ये स्याही कैसे बनती है और इसकी एक बोतल की कीमत कितनी है. 

क्यों लगाई जाती है स्याही?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर वोटिंग के दौरान ये स्याही लगाना क्यों जरूरी होता है. दरअसल इससे एक ही व्यक्ति को दो बार वोट डालने से रोका जाता है, यानी एक बार स्याही लगने के बाद वोटर की पहचान की जा सकती है और वो दोबारा वोट नहीं डाल सकता है. भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में वोटर्स की पहचान के लिए इस स्याही का इस्तेमाल किया जाता है. इसी स्याही का इस्तेमाल पल्स पोलियो प्रोग्राम में भी किया जाता है. चुनाव में साल 1962 में पहली बार इस चुनावी स्याही का इस्तेमाल किया गया था. 

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में वोट डालने के बाद एक महिला वोटर.
Photo Credit: PTI

कहां बनती है चुनावी स्याही?

चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही भारत में दो जगहों पर बनती है. हैदराबाद की रायडू लेबोरेटरी और कर्नाटक के मैसूर में स्थित मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड इसे बनाते हैं. हालांकि चुनाव आयोग मैसूर में बनी स्याही का इस्तेमाल करता है, वहीं हैदराबाद में बनने वाली स्याही कई देशों में भेजी जाती है. दुनिया के करीब 90 देश इसका इस्तेमाल करते हैं. 

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क्यों नहीं मिटती स्याही?

इस स्याही को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है, इसके अलावा कुछ और केमिकल भी मिलाए जाते हैं. इसकी खास बात ये है कि इसे लगाने के बाद 20 से 40 सेकेंड में ही ये सूख जाती है और अपनी गहरी छाप छोड़ती है. नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) ने चुनाव आयोग को ये फॉर्मूला दिया था. इस स्याही को बनाने का पूरा फॉर्मूला कभी सार्वजनिक नहीं किया गया, किसी भी दूसरी कंपनी को इसे बनाने की इजाजत भी नहीं है. 

कितनी होती है कीमत?

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से 26 लाख स्याही की बोतलें ऑर्डर की गई थीं. जिनके लिए करीब 33 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. इस हिसाब से देखा जाए तो एक बोतल स्याही की कीमत करीब 127 रुपये होती है. एक बोतल में 10 एमएल स्याही होती है, यानी एक एमएल स्याही की कीमत करीब 12.7 रुपये बैठेगी. वहीं एक लीटर की कीमत 12,700 होगी. 

एक उंगली पर स्याही लगाने का खर्च

अब कुछ लोगों के मन में ये भी सवाल होता है कि एक वोटर की उंगली पर स्याही लगाने का कुल खर्च कितना आता है? जैसा कि हमने आपको बताया है कि एक बोतल चुनावी स्याही की कीमत करीब 127 रुपये होती है. इस एक बोतल से करीब 600 से 700 वोटर्स को स्याही लगाई जा सकती है. यानी एक वोटर की उंगली पर स्याही लगाने का खर्च एक रुपये से भी कम का आता है. 

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