कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन सुर्खियों में रहा पर कृषि सुधारों की उम्मीद कायम

YEARENDER 2021 Agriculture Sector : कोरोना की तमाम दिक्कतों के बीच देश में खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. इससे सरकार को कई महीनों तक कोविड प्रभावित गरीब परिवारों के लिए मुफ्त अतिरिक्त राशन प्रदान करने में मदद मिली.

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किसान आंदोलन खत्म होने के बाद दिल्ली के सिंघू, गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर खाली हुए
नई दिल्ली:

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन 2021 में एग्रीकल्चर सेक्टर का सबसे बड़ा मुद्दा रहा. सरकार जहां इसे कृषि सुधारों की दिशा में बड़ा कदम बताते हुए किसानों को मनाने का प्रयास करती रही, वहीं किसानों इनकी वापसी की अपनी मांग को लेकर टस से मस नहीं हुए. वहीं कृषि क्षेत्र की अन्य प्रगति की बात करें तो भारत ने इस साल खाद्यान्न उत्पादन का नया रिकॉर्ड बनाया. लेकिन सरकार को तीन विवादित कृषि सुधार कानूनों को वापस लेना पड़ा. वहीं खाद्य तेलों की महंगाई से आम उपभोक्ता परेशान रहे. अब महामारी से जुड़ी तमाम दिक्कतों के बीच वर्ष 2022 में भी बेहतर उपज की उम्मीद की जा रही है. देश में खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. इससे सरकार को कई महीनों तक कोविड प्रभावित गरीब परिवारों के लिए मुफ्त अतिरिक्त राशन प्रदान करने में मदद मिली. वहीं कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लंबे विरोध के बाद इन्हें रद्द किया गया.

कोरोना के बीच के बीच कृषि उन क्षेत्रों में से एक था, जिसने शानदार प्रदर्शन किया. कृषि क्षेत्र में मार्च, 2022 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर की उम्मीद है. जून में खत्म फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर 30 करोड़ 86.5 लाख टन को छू गया. चालू फसल वर्ष में उत्पादन 31 करोड़ टन तक पहुंच सकता है. सरकार ने किसानों के लाभ के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर भारी मात्रा में गेहूं, चावल, दाल, कपास और तिलहन की खरीद की.

वर्ष 2020-21 के दौरान धान और गेहूं की खरीद क्रमश: रिकॉर्ड 894.18 लाख टन और 433.44 लाख टन पर पहुंच गई. दालों की खरीद 21.91 लाख टन, मोटे अनाज की 11.87 लाख टन और तिलहन की खरीद 11 लाख टन की हुई.
वहीं रिकॉर्ड उत्पादन के बीच नवंबर, 2020 में शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिरकार इस महीने खत्म हो गया. संसद ने 29 नवंबर को शीतकालीन सत्र के पहले दिन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए एक विधेयक पारित किया.

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सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में ही इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी. केंद्र को अपनी मांगों को मानने के लिए मजबूर करने के बाद किसान संगठन अपने संघर्ष की जीत का दावा कर रहे हैं. वहीं अर्थशास्त्री और सरकारी अधिकारी इसे कृषि विपणन प्रणाली में सुधार के प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका मान रहे हैं.  

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नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि हम उम्मीद कर रहे थे कि तीन कृषि सुधारों के लागू होने से देश के किसानों का बड़ा हिस्सा लाभान्वित होगा. लेकिन यह अवसर हमने गंवा दिया है.  नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि अगर कृषि कानूनों को लागू किया गया होता, तो ‘‘इससे काफी हद तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलती.

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