भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर वर्ल्ड बैंक की अहम अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट IDU (India Development Update) के मुताबिक, अहम वैश्विक चुनौतियों के बावजूद वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान भारत 7.2 फ़ीसदी की विकास दर के साथ सबसे तेज़ रफ़्तार से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा. G20 देशों में भारत की विकास दर दूसरे सबसे ऊंचे स्थान पर रही, और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के औसत से लगभग दोगुनी रही. यह उपलब्धि मज़बूत घरेलू मांग, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में बढ़िया निवेश और वित्तीय क्षेत्र के मज़बूत होने से हासिल हुई.
IDU के अनुसार, ऊंची वैश्विक ब्याज दरों, भू-राजनैतिक तनाव और सुस्त वैश्विक मांग के चलते विश्वभर में प्रतिकूल हालात बने भी रहेंगे, और बढ़ेंगे भी. इसके फलस्वरूप, वैश्विक आर्थिक विकास भी इन संयुक्त कारकों के चलते मध्यम अवधि में धीमा होना तय है. सो, इस संदर्भ में वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि वित्तवर्ष 2023-24 के दौरान भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विकास दर 6.3 फ़ीसदी रहेगी.
यह अपेक्षित सुधार मुख्यतः चुनौतीपूर्ण बाहरी हालात और मांग में उछाल के कम होते चले जाने के कारण हुआ. हालांकि 7.4 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के साथ सेवा क्षेत्र की गतिविधियों के मज़बूत बने रहने और निवेश में बढ़ोतरी के भी 8.9 फ़ीसदी पर मजबूत बने रहने का अनुमान है.
भारत में वर्ल्ड बैंक के कन्ट्री डायरेक्टर ऑगस्टे टानो कुआमे का कहना है, "प्रतिकूल वैश्विक माहौल अल्पावधि में चुनौतियां पैदा करता रहेगा... सार्वजनिक खर्चों का दोहन कर ज़्यादा निजी निवेश लाने से भारत के लिए आने वाले वक्त में वैश्विक अवसरों से फ़ायदा उठाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा होंगी, और इससे भी ज़्यादा विकास दर हासिल की जा सकेगी..."
वर्ल्ड बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री तथा रिपोर्ट के प्रधान लेखक ध्रुव शर्मा के मुताबिक, "भले ही मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी अस्थायी रूप से खपत को बाधित कर सकती है, लेकिन हम सुधार का अनुमान लगा रहे हैं, और कुल मिलाकर स्थितियां निजी निवेश के अनुकूल रहेंगी... चूंकि वैश्विक वैल्यू चेन की रीबैलेन्सिंग जारी रहेगी, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का वॉल्यूम बढ़ने की भी संभावना है..."
वर्ल्ड बैंक को उम्मीद है कि वित्तीय मज़बूती वित्तवर्ष 2023-24 में भी जारी रहेगी व केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा भी घटते रहने का अनुमान है, तथा वह GDP के 6.4 फ़ीसदी से घटकर 5.9 फ़ीसदी तक आ सकता है. सार्वजनिक ऋण के GDP के 83 फ़ीसदी पर स्थिर होने की उम्मीद है. बाहरी मोर्चे पर, चालू खाता घाटा GDP के 1.4 फ़ीसदी तक कम हो जाने की उम्मीद है.