गुड़गांव की MNC में काम करने वाली महिला का नंबर 'कॉल गर्ल' के नाम से किया वायरल, दो साल तक आते रहे अंजान कॉल

अपराधी इतना शातिर था कि हर कुछ ही घंटे में अपनी आईडी डिलीट कर नई आईडी बना कर फोन करता था, जिससे सुराग ढूंढना पुलिस के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया. हैकर ने महिला को बेहद अश्लील तरीके से बदनाम किया.

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  • नॉर्थ दिल्ली के सब्जी मंडी निवासी एक महिला को दो वर्षों से फेसबुक हैक कर अश्लील तस्वीरें वायरल कर मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
  • आरोपी ने पुणे में महिला के परिवार के मोबाइल नंबर के साथ कॉल गर्ल सर्विस के फर्जी पोस्टर चिपकाकर सामाजिक बदनामी और धमकियां दीं।
  • दिल्ली पुलिस की साइबर टीम ने तकनीकी जांच के बाद पुणे में आरोपी यासिन शेख को गिरफ्तार कर मोबाइल और सिम कार्ड जब्त किए।
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गुरुग्राम की एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत नॉर्थ दिल्ली के सब्जी मंडी में रहने वाली परिवार की विवाहित बेटी बीते दो तीन वर्षों से भीषण साइबर उत्पीड़न का शिकार रही. अपराधी ने फेसबुक आईडी हैक कर, परिवार की तस्वीरों को अश्लील ढंग से एडिट कर सोशल मीडिया पर फैला दिया और यह प्रचारित किया कि परिवार वेश्यावृत्ति में शामिल है. पीड़िता का मोबाइल नंबर वायरल कर लाखों लोगों ने “रेट” पूछते हुए कॉल किए, जिससे महिला को मानसिक प्रताड़ना और डिप्रेशन जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ा.

अपराधी इतना शातिर था कि हर कुछ ही घंटे में अपनी आईडी डिलीट कर नई आईडी बना कर फोन करता था, जिससे सुराग ढूंढना पुलिस के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया. हैकर ने महिला को बेहद अश्लील तरीके से बदनाम किया. यह उत्पीड़न यहीं नहीं रूका. आरोपी ने पीड़िता और उसके परिवार के पोस्टर पुणे शहर की दीवारों और रेलवे स्टेशन के टॉयलेट्स में चिपका दिए, जिसमें 'कॉल गर्ल सर्विस' के नाम पर परिवार का मोबाइल नंबर लिखा गया. फर्जी पोस्टर की तस्वीरें वायरल हुईं, जिससे महिला के साथ उसके परिवार को बदनामी, धमकी और सामाजिक बहिष्कार की नौबत झेलनी पड़ी. इस बेहद मानसिक दबाव और न्याय की आस में पीड़िता ने दिल्ली नॉर्थ जिले के डीसीपी राजा बांठिया को अपनी शिकायत सौंपी.

दिल्ली पुलिस की साइबर टीम का ऑपरेशन
डीसीपी के निर्देश पर साइबर क्राइम टीम गठित हुई, जिसने तकनीकी तौर पर कॉल डिटेल और आईपी ट्रैकिंग के जरिए आरोपी का लोकेशन पुणे, महाराष्ट्र में पाया. महीनों की जद्दोजहद के बाद दिल्ली पुलिस की टीम ने पुणे में छापेमारी कर आरोपी यासिन शेख को दबोच लिया, उसके पास से मोबाइल फोन और कई सिम कार्ड जब्त किए गए.

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पूछताछ के बाद आरोपी ने जुर्म कबूला
पूछताछ के दौरान यासिन शेख ने स्वीकारा कि उसकी एक महिला दोस्त थी, जो पीड़िता के पति के साथ काम करती थी. वह अपनी दोस्त को बार-बार मना करता था कि वह पीड़िता के पति के साथ काम न करे, लेकिन उसकी बातों को महत्व नहीं मिला. बाद में जब महिला दोस्त ने उसकी हरकतों की वजह से उसे सोशल मीडिया से ‘अनफ्रेंड' कर दिया, तो यासिन ने बदले की भावना से पीड़िता के सोशल मीडिया अकाउंट से उसका मोबाइल नंबर निकालकर उसे सार्वजनिक स्थानों पर लिख दिया और सोशल मीडिया पर ‘कॉल गर्ल सर्विस' जैसी ​अपमानजनक टिप्पणी के साथ पोस्ट करने लगा. आरोपी बार-बार पीड़िता और उसके पति को कॉल व संदेश भेजता रहा. आरोपी ने लगातार फर्जी अकाउंट से पीड़िता की फोटो व नंबर पोस्ट किए, जिससे इस महिला को अपमान के साथ साथ दो तीन वर्ष तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा और उस महिला की मानसिक स्थिति खराब होने के साथ साथ मान मर्यादा भी तार तार हो गई.

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साइबर अपराध के बढ़ते मामले और सरकारी तंत्र

देश भर में इस तरह के साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. केवल आम जनता ही नहीं, अफसर और राजनेता भी इसकी चपेट में हैं. लेकिन आम नागरिकों की सुनवाई और त्वरित कार्रवाई में आज भी चुनौतियां हैं.

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भारत सरकार ने राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) और हेल्पलाइन नंबर 1930 जैसे उपाय जरूर शुरू किए हैं, जहां कोई भी साइबर अपराध की शिकायत दर्ज कर सकता है. हाल ही में e-Zero FIR जैसी स्वचालित प्रणाली भी शुरू की गई है, जो कि बड़ी रकम या गंभीर मामलों में तुरंत डिजिटल एफआईआर दर्ज करने की सुविधा देती है. लेकिन मैदान स्तर पर “एफआईआर से आगे क्या” इस सवाल पर पुलिस और साइबर सेल का जवाब अक्सर धीमा और अधूरा रहता है.

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समाज और सरकार के सामने सवाल
- क्या भारत में साइबर अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि कोई शरीफ परिवार दो साल तक न्याय के लिए भटकता रहे?
- क्यों साइबर अपराधियों पर तेज और कठोर कार्रवाई अब भी अपवाद है?
- क्या साइबर अपराध नियंत्रण के सभी सरकारी प्रयास जमीनी हकीकत में असरदार दिख रहे हैं?

 कानून और व्यवस्था: समाधान व उम्मीद
भारत सरकार की ओर से I4C (Indian Cybercrime Coordination Centre), त्वरित रिपोर्टिंग पोर्टल, जागरूकता अभियान, कॉलर ट्यून अभियान आदि अनेक प्रयास जरूर जारी हैं, जिनका उद्देश्य डिजिटल सुरक्षा बढ़ाना है. लेकिन न्यायपालिका और पुलिस को इसी सजगता के साथ टेक्नोलॉजी और संसाधनों को ‘आम आदमी के न्याय' तक लाने की जरूरत है. 

साइबर अपराध की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक रहने, संदिग्ध लिंक या कॉल्स में सतर्कता बरतने, और किसी भी अपराधिक हरकत की रिपोर्ट तुरंत साइबर पोर्टल या नजदीकी पुलिस स्टेशन में करने की सलाह दी जाती है. यह केवल एक परिवार की लड़ाई नहीं, पूरे समाज की लड़ाई है. जब तक ऐसे अपराधियों को कठोर से कठोर सजा और पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक ‘डिजिटल इंडिया' की असली तस्वीर अधूरी रहेगी.

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